देश की आज़ादी के पहले भारत में हिंदू और मुसलमान दंगे हुए। 15 अगस्त 1947 की सुबह जब लोग सो कर उठे तो पूर्वी और पश्चिमी पंजाब में क़रीब 2,00,000 लोगों की हत्याएँ एक साल के भीतर हो चुकी थीं। लगातार हिंसा के बीच सरदार वल्लभभाई पटेल ने दिल्ली आए पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली से 16 अगस्त 1947 को कहा कि पंजाब अवार्ड का एकमात्र समाधान है कि बड़े पैमाने पर आबादी का हस्तांतरण किया जाए। इस प्रस्ताव का जेबी कृपलानी ने कड़ा विरोध करते हुए कहा कि आबादी के हस्तांतरण की कोई ज़रूरत नहीं है, इसके घातक परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान हिंसा रोकने में कामयाब होगा और लियाकत अली ने भी कहा कि वह हिंदुओं और सिखों के अधिकार की रक्षा करेंगे। माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।
बहरहाल, कुछ हज़ार और मौतों के बाद भारत सरकार इसके लिए सहमत हो गई और फ़ैसला किया गया कि पहले शरणार्थियों को जाने का मौक़ा दिया जाएगा, जिससे क़ानून-व्यवस्था बहाल हो सके। एक महीने बाद भारत और पाकिस्तान की सरकारें आबादी के हस्तांतरण के लिए सहमत हो गईं और 1948 के मध्य तक क़रीब 55 लाख ग़ैर-मुसलिम पश्चिमी पंजाब से भारत आए और इतने ही मुसलमान पूर्वी पंजाब से पाकिस्तान गए। यह आबादी हस्तांतरण कितना वीभत्स था, इसका वर्णन न सिर्फ़ इतिहास में, अमृता प्रीतम और सआदत हसन मंटो की कहानियों में, बल्कि ख़ुद सरदार वल्लभ भाई पटेल के उस दौर के भाषणों में भी मिलता है।
केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) बना दिया है। इसमें प्रस्ताव है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यकों को भारत नागरिकता देगा, जो इन देशों में सताए जा रहे हैं। पाकिस्तान में 332,343 अनुसूचित जाति सहित 21,11,271 हिंदू और क़रीब इतने ही ईसाई हैं। बांग्लादेश में वहाँ की कुल 15,25,10,000 आबादी में 8.3 प्रतिशत हिंदू, 0.6 प्रतिशत बुद्धिस्ट और 0.4 प्रतिशत ईसाई हैं। अफ़ग़ानिस्तान में 2018 की जनगणना के मुताबिक़ 3.553 करोड़ आबादी में से क़रीब 1 प्रतिशत ग़ैर-मुसलिम हैं। सरकार और उसके कर्ता-धर्ताओं के बयानों के मुताबिक़ इन तीनों देशों की इतनी ग़ैर मुसलिम आबादी वहाँ की सरकारों से उत्पीड़ित है। भारत सरकार उन्हें भारत में बसाना चाहती है।
यह सवाल उठना लाज़मी है कि आर्थिक आँकड़ों में हर मोर्चे पर विफल भारत सरकार क़रीब 4 करोड़ पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और अफ़ग़ानी हिंदुओं के लिए क्या इंतज़ाम करेगी। भारत में करोड़ों युवा काम ढूंढ रहे हैं। आईटी से लेकर मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर तक हर क्षेत्र में लाखों लोगों की नौकरियाँ चले जाने की ख़बर आए दिन अख़बारों में सुर्खियाँ बन रही हैं।
भारत सरकार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के ‘सताए गए ग़ैर-मुसलमानों’ के लिए क्या इंतज़ाम करने जा रही है?
और वे अगर भारत में बसना चाहते हैं तो उन्हें नागरिकता देकर कौन-सा इंतज़ाम करेगी, जबकि भारत की 85 प्रतिशत दलित पिछड़ी आबादी बेरोज़गारी, क़ानून-व्यवस्था ख़राब होने और शासन प्रशासन में हिस्सेदारी न होने का भयानक उत्पीड़न झेल रही है। बेरोज़गारी दर पिछले 40 साल में सबसे ज़्यादा है।
इसके अलावा सरकार नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी) लाई है। 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित अंतिम एनआरसी में 3.113 करोड़ लोगों के नाम इसमें शामिल किए गए हैं, जबकि 19 लाख लोग एनआरसी से बाहर हो गए हैं। यानी 19 लाख लोग यह साबित नहीं कर पाए हैं कि वे भारत के नागरिक हैं। सरकार का कहना है कि वे घुसपैठिए हैं। उनको बाहर किया जाएगा। उनके लिए सरकार डिटेंशन कैंप बनवा रही है और तमाम लोगों को डिटेंशन कैंपों में डाला गया है।
देश भर में एनआरसी?
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि देश भर में एनआरसी लागू की जाएगी। भारत की कुल जनसंख्या 125 करोड़ से ज़्यादा है। असम में सवा 3 करोड़ से भी कम लोग रहते हैं, जहाँ 19 लाख लोग अपनी नागरिकता का सबूत नहीं दे पाए हैं। अगर देश भर में एनआरसी लागू किया जाता है और उनसे 1971 के पहले के यानी 50 साल पुराने रिकॉर्ड माँगे जाते हैं कि वह भारत के नागरिक थे, या नहीं तो संभव है कि 10-15 करोड़ लोग ऐसे निकल आएँगे, जो कोई साक्ष्य नहीं दे पाएँगे कि उनके पुरखे भारत के नागरिक रहे हैं। ऐसी आबादी में दलित, पिछड़ों से लेकर भिखारी, घुमंतू जातियाँ, नागा, संन्यासी जैसे तमाम लोग आ जाएँगे, जिनके नाम से खानदानी कोई ज़मीन नहीं है, जिसका खसरा खतौनी वे सरकार के सामने प्रस्तुत कर अपने भारतीय होने का प्रमाण दे सकें। ऐसे में सरकार की योजना के मुताबिक़ इस आबादी को डिटेंशन कैंप में डाला जाएगा और उन्हें उन देशों को भेजा जाएगा, जहाँ से वे आए हैं।
मतलब यह है कि सरकार क़रीब 4 करोड़ पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और अफ़ग़ानी ग़ैर-मुसलिमों को भारत लाना चाहती है और 15 करोड़ लोगों को भारत से भगाना चाहती है, जो अपनी नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं दे सकेंगे।
यह भी सवाल है कि कितने लोग वास्तव में पाकिस्तान बांग्लादेश में उत्पीड़ित हैं और भारत आना चाहते हैं? हालाँकि असम में सरकार ने जो हालत पैदा किए हैं, और संसद में जिस तरह से बयान दिया जा रहा है, लोगों को यह डर सताने लगा है कि एनआरसी देश भर में लागू होगा। लोगों से भारतीय होने का सबूत माँगा जाएगा और यह सबूत न दे पाने पर करोड़ों की संख्या में लोगों को डिटेंशन कैंप में डाला जाएगा क्योंकि महज़ सवा तीन करोड़ आबादी वाले असम में 19 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए हैं।
जिनको निकाला जाएगा वे कौन हैं?
भारत सरकार अपने उन नागरिकों को देश से भगा देने का दंभ भर रही है जो 50 साल पहले भारत की ज़मीन पर पैदा हुए। बांग्लादेश के युद्ध के समय बड़ी संख्या में लोग भारत आए। तत्कालीन इंदिरा गाँधी सरकार ने इसी को आधार बनाकर पाकिस्तान पर हमला किया और पाकिस्तान का विभाजन हुआ। इस हिसाब से देखें तो बांग्लादेश से भारत आने वालों ने ही भारत पाकिस्तान के 1971 के युद्ध को वैधता प्रदान की थी, वह भारत के भक्त थे। 1971 के युद्ध के पहले 20 साल या इससे ज़्यादा की उम्र में जो भारत आए होंगे, वह इसी धरती पर दफ़्न हो गए। अगर हिंदू संस्कृति को मानें कि मनुष्य का शरीर क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर से बना हुआ है तो बांग्लादेश से आए ज़्यादातर लोग भारत की ज़मीन पर इन्हीं पंच तत्वों में विलीन हो चुके हैं और 1971 और उसके बाद जन्मे लोग भारत के ही पंच तत्वों से बने हैं और अब इस धरती को अपने ख़ून पसीने, मेहनत मज़दूरी से सींचते 50 साल तक उम्र के हो चुके हैं। और सरकार उनसे भारत के नागरिक होने का सबूत माँग रही है।
अपनी राय बतायें