पहले सोनिया गांधी की ईडी के सामने पेशी। फिर मनीष सिसोदिया के ख़िलाफ़ सीबीआई की जाँच और पार्थ चटर्जी की गिरफ़्तारी। तीन अलग-अलग दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ जाँच एजेंसियों का शिकंजा। वो भी एक हफ़्ते में। फिर विपक्षी दलों की नींद न टूटे तो क्या कहा जाये! क्या इन्हें अभी भी इस बात का अंदाजा नहीं है कि मोदी सरकार एक-एक कर सबको ख़त्म करने की योजना पर काम कर रही है और वो दिन दूर नहीं है जब देश में विपक्ष नाम की कोई चिड़िया नहीं बचेगी? इन दलों का कोई नाम लेवा भी नहीं होगा? इसके बावजूद विपक्ष को कोई जुंबिश नहीं है कि आख़िर इस विपत्ति का सामना कैसे किया जाये? न कोई सोच दिखाई पड़ती है और न ही कोई रणनीति। दिखाई पड़ते हैं तो आपसी झगड़े, एक दूसरे को निपटा देने की गीदड़ भभकियाँ। ऐसा लगता है कि संपूर्ण विपक्ष सामूहिक आत्महत्या करने की तैयारी कर रहा है।