मुल्क़ में हर साल 11 नवम्बर यानी मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की यौम-ए-पैदाईश के दिन को ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में मौलाना आज़ाद का योगदान अतुलनीय है। वे आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। आज़ादी के बाद शिक्षा के क्षेत्र में जो भी नेशनल प्रोग्राम बने, उनमें मौलाना आज़ाद का अहमतरीन रोल था।
जन्मदिन पर विशेष: मौलाना आज़ाद को याद रखना क्यों ज़रूरी है?
- विचार
- |
- 11 Nov, 2020
मौलाना आज़ाद, मज़हब के नाम पर अलगाववाद को बढ़ावा देने वाली हर गतिविधि के मुखालिफ थे। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान साम्प्रदायिक मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए उन्होंने मुसलिम लीग से जुड़े कई मुसलिम सियासतदानों की खुलकर आलोचना की। जाहिर है कि अपनी राजनीतिक आस्थाओं तथा विचारों के चलते उन्हें मुसलमानों के एक बड़े तबके का विरोध भी झेलना पड़ा। बावजूद इसके उन्होंने महात्मा गांधी और कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा।

दूसरी आलमी जंग के बाद जब सारी दुनिया में तालीम को लेकर बड़े पैमाने पर काम हो रहा था, तब वे मौलाना आज़ाद ही थे, जिन्होंने भारत में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अहम किरदार निभाया। विश्वस्तरीय शिक्षा का देश में प्रसार हो, इसके लिए उन्होंने ना सिर्फ बच्चों को, बल्कि बड़ों को भी ज़्यादा से ज़्यादा स्कूल से जोड़ने की प्रक्रिया शुरु की।
शिक्षा पर दिया जोर
शिक्षा के बारे में मौलाना आज़ाद के ख़याल बड़े ही क्रांतिकारी थे। उनका कहना था, ‘‘यह प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है कि उसे कम से कम बुनियादी शिक्षा मिले। जिसके बगैर वह एक नागरिक के तौर पर अपने कर्तव्यों को पूरी तरह नहीं निभा सकता।’’ दरअसल, शिक्षा के माध्यम से मौलाना आज़ाद, समाज का स्तर ऊपर उठाना चाहते थे। यही वजह है कि शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने कई कार्य किए।