भारतीय जनता पार्टी पूरी कोशिश कर रही है कि किसी तरह से ‘लालू यादव के जंगल राज’ का मुद्दा चला कर अपने और नीतीश कुमार के जनाधार के एक अच्छे-ख़ासे हिस्से को महागठबंधन की तरफ खिसकने से रोक लिया जाए। यह अलग बात है कि चुनावी मुहिम की शुरुआत से ही अपनायी जा रही यह रणनीति पहले चरण के मतदान तक 50 फ़ीसदी तो नाकाम हो ही चुकी है।
मोदी को उलटा पड़ेगा जंगलराज की याद दिलाना!
- विचार
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- 1 Nov, 2020

चूँकि ‘जंगल राज’ के आरोप के मुक़ाबले रखने के लिए ‘सुशासन बाबू का विकास’ है ही नहीं, इसलिए यह भी हो सकता है कि बार-बार लालू राज का ज़िक्र करने से पिछड़ी और दलित जातियों को कथित जंगल राज के बजाय लालू का वह सामाजिक न्याय न याद आ जाए जिसके तहत कमज़ोर जातियों को रंग-रुतबे वाले तबक़ों के मुक़ाबले मिलने वाली ‘इज्ज़त की राजनीति’ का पहला मनोवैज्ञानिक उछाल मिला था। यानी बीजेपी की यह आधी रणनीति भी उसके ख़िलाफ़ उल्टी बैठ सकती है।
ध्यान रहे कि राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठजोड़) ने पहले ‘उनके 15 साल बनाम हमारे 15 साल’ का फिकरा उछाला था, ताकि ‘लालू के जंगल राज’ के मु़काबले ‘सुशासन बाबू’ की हुक़ूमत को पेश किया जा सके। लेकिन जल्दी ही इस रणनीति की हवा निकल गई।