बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उस समझ के कई पहलुओं पर गम्भीर सवालिया निशान लगा दिया है जो चुनाव प्रचार के दौरान बनाई जा रही थी या जिसका प्रचार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठजोड़ (एनडीए) की तरफ़ से किया जा रहा है। ये पहलू इस प्रकार हैं-
बिहार में ‘साइलेंट’ और स्त्री वोटरों के मतदान का राज़
- विचार
- |
- |
- 18 Nov, 2020

स्त्रियों के कुल वोटों का अंदाज़ा लगाया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कुल 38 फीसदी महिला वोटरों ने एनडीए के चुनाव चिह्नों के बटन दबाए, जबकि महागठबंधन के चुनाव चिह्नों के बटन दबाने वाली स्त्रियों का प्रतिशत 37 फीसदी रहा। केवल एक फीसदी का अंतर कहीं से यह साबित नहीं करता कि एनडीए की सरकार माताओं-बहनों ने बनायी है।
(1) नीतीश कुमार का कद छोटा हो गया है। अब गठजोड़ में उनकी हैसियत नम्बर दो की हो गई है, और बीजेपी उन्हें जैसे चाहे चला सकती है।
(2) एनडीए की सरकार बिहार की माता-बहनों और ‘साइलेंट’ वोटरों ने बना दी है।
(3) पहले दौर के बाद जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैदान में कूदे और अपनी रैलियों में जंगल राज की वापसी का खतरा दरपेश किया, वैसे ही हवा बदलनी शुरू हो गई।
(4) बिहार का चुनाव इस बार नीतीश कुमार के चेहरे पर नहीं बल्कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता की दम पर जीता गया है। बिहार की जनता नीतीश से नाराज़ और प्रधानमंत्री से बहुत खुश थी।
(5) अगर बीजेपी नीतीश कुमार से गठजोड़ किये बिना चुनाव में उतरती तो अकेले ही बहुमत प्राप्त कर सकती थी।