एक अत्यधिक परेशान करने वाले घटनाक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय में 20 अगस्त 2019 की रात शहीद भगत सिंह और नेताजी की मूर्तियों को वी डी सावरकर की मूर्ति के साथ एक ही पीठिका पर रखकर अनावरण करने का दुस्साहस किया गया। भगत सिंह और नेताजी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने देश की आज़ादी के लिए प्राण तक न्यौछावर कर दिए थे। देश और दुनिया अभी इस सचाई को भूली नहीं है कि भगत सिंह और नेताजी ने एक ऐसे आज़ाद समावेशी भारत के लिए जान दी जो लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष होना था। एक ऐसा देश जहाँ धर्म-जाति का बोलबाला नहीं बल्कि समानता और न्याय फले-फूलें। इन शहीदों ने 'इंक़लाब ज़िंदाबाद' और 'जय हिन्द' जैसे नारों की ललकार से अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ देश की जनता को लामबंद किया था।
शहादत दिवस : भगत सिंह-नेताजी शहीद हो गए, सावरकर ने अँग्रेज़ों से माँगी थी माफ़ी
- विचार
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- 23 Mar, 2020

भगत सिंह भी अँग्रेज़ों की जेल में रहे। उन्हें फाँसी की सजा हुई। उनके पिता ने अंग्रेज़ों से जब सज़ा कम करने की ख़ातिर चिट्ठी लिखी और इस बात की जानकारी भगत सिंह को मिली तो वह काफ़ी नाराज़ हुए। उन्होंने अपने पिता सरदार किशन सिंह को नाराज़गी भरा ख़त लिखा कि आपके इस काम ने मेरे दिमाग का संतुलन बिगाड़ दिया है।... ये सब को पता चले कि आपकी ट्रिब्यूनल को लिखी चिट्ठी में मेरी सहमति नहीं हैं।’ बाद में भगत सिंह ने अदालत में अपना बचाव भी करने से मना कर दिया था। भगत सिंह के शहादत दिवस पर सत्य हिन्दी की ख़ास पेशकश।