संविधान, क़ानून व उसके लिए बनी संस्थाएँ, शासकीय नैतिकता, समारोहों में लिया गया वह शपथ जिसमें संविधान में निष्ठा की कसम खाई जाती है, केवल तब तक ज़िंदा हैं जब तक सत्ता और संस्थाओं में बैठे लोग इसका सम्मान करें। संविधान-सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई। इस उद्घाटन बैठक में प्रोविज़नल चेयरमैन सच्चिदानंद सिन्हा ने दुनिया के जाने-माने अमेरिकी न्यायविद जोसेफ स्टोरी को उद्धृत करते हुए कहा था, ‘संविधान की इस भव्य इमारत को ढहने में एक घंटा भी नहीं लगेगा अगर लोक-संस्थाओं से उन लोगों को बाहर कर दिया जाएगा जो सच बोलने की हिमाकत करते हैं, और चाटुकारों को पुरष्कृत किया जाएगा ताकि वे जनता से झूठ बोलकर उन्हें ठग सकें’।
शासकीय नैतिकता का आख़िरी झीना पर्दा भी जाता रहा
- विचार
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- 20 May, 2021

जोसेफ स्टोरी की 200 साल पहले कही गयी बात सही साबित हो रही है। पार्टी में आ जाएँ तो सात खून माफ़ लेकिन सरकार के ख़िलाफ़ जाएँगे तो ‘देशद्रोह’। संदेश साफ़ है ‘पाला बदलो या सीबीआई को झेलो और जेल भोगो’। क्या इस सन्देश का तार्किक विस्तार यह नहीं हो सकता कि ‘हमारे ख़िलाफ़ होने का मतलब सीबीआई/ एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट या इनकम टैक्स की चाबुक झेलने को तैयार रहो।
नारद घोटाले में सीबीआई ने सत्ताधारी टीएमसी के चार नेताओं को गिरफ्तार किया लेकिन मुख्य अभियुक्त सहित जो अन्य आरोपी केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी में शामिल हो गए उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। क्योंकि उनके ख़िलाफ़ अभियोग की अनुमति या तो माँगी नहीं गयी या लोक-सभा स्पीकर ने नहीं दी, जबकि राज्यपाल ने, जिनका राज्य की मुख्यमंत्री से झगड़ा भारतीय लोकतंत्र का एक बदनुमा दाग़ बन गया है, चुनाव परिणाम आने के पांच दिनों के भीतर अनुमति दे दी।