संविधान, क़ानून व उसके लिए बनी संस्थाएँ, शासकीय नैतिकता, समारोहों में लिया गया वह शपथ जिसमें संविधान में निष्ठा की कसम खाई जाती है, केवल तब तक ज़िंदा हैं जब तक सत्ता और संस्थाओं में बैठे लोग इसका सम्मान करें। संविधान-सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई। इस उद्घाटन बैठक में प्रोविज़नल चेयरमैन सच्चिदानंद सिन्हा ने दुनिया के जाने-माने अमेरिकी न्यायविद जोसेफ स्टोरी को उद्धृत करते हुए कहा था, ‘संविधान की इस भव्य इमारत को ढहने में एक घंटा भी नहीं लगेगा अगर लोक-संस्थाओं से उन लोगों को बाहर कर दिया जाएगा जो सच बोलने की हिमाकत करते हैं, और चाटुकारों को पुरष्कृत किया जाएगा ताकि वे जनता से झूठ बोलकर उन्हें ठग सकें’।