दिल्ली सिर्फ दिल्लीवालों के लिए?
केजरीवाल ने बीमार पड़ने से पहले अपने मंत्रिमंडल का फ़ैसला ज़ाहिर किया था कि देश की राजधानी के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में केवल दिल्ली के नागरिकों का ही इलाज किया जाएगा।अरविंद केजरीवाल के निर्णय को उलटा नहीं जाता तो उनका अगला आदेश यह भी हो सकता था कि दिल्ली के मुक्तिधामों या क़ब्रगाहों में केवल दिल्ली के मृतकों की ही अंत्येष्टि होगी।
फ़ैसले के पीछे क्या थी वजह?
केजरीवाल सरकार को भय है कि कम्युनिटी ट्रांसमिशन के कारण जून अंत तक दिल्ली के अस्पतालों में 15 हज़ार और जुलाई अंत तक 81 हज़ार बिस्तरों की ज़रूरत पड़ेगी जबकि अभी केवल 10 हज़ार ही उपलब्ध हैं।कहाँ है देश?
अब अगर देश के सभी मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों के लिए ऐसा ही तय कर लें तो फिर उस देश को कहाँ तलाश किया जाएगा जिसके कि बारे में नारे लगाए और लगवाए जा रहे हैं कि ‘एक देश, एक संविधान’; ’एक देश, एक राशन कार्ड ‘और आगे चलकर ‘एक देश ,एक भाषा’ भी?संवेदनहीन राजनीति
हम देख रहे हैं कि किस तरह से अपनी जाति के लोगों को रोज़गार में प्राथमिकता देने, अपनी पार्टी के लोगों को पद और ठेके प्रदान करने, अपनी पसंद और वफ़ादारी के नौकरशाहों को शासन चलाने में मदद करने के बाद बाहरी नागरिकों के अपने राज्य, ज़िले और गाँव में प्रवेश को रोकने के लिए अवरोध खड़े किए जा रहे हैं।सत्ता की राजनीति नागरिकों को संवेदनशून्य और शासकों को संज्ञाहीन बना रही है।
अन्ना का आन्दोलन
दिल्ली में जब 2011 में ‘इंडिया अगेन्स्ट करप्शन’ का आंदोलन चल रहा था और रामलीला मैदान में मंच पर अन्ना हज़ारे के साथ केजरीवाल थे, कुमार विश्वास कविताएँ गा रहे थे और किरण बेदी झंडा लहरा रही थीं तब कहीं से भी यह आवाज़ नहीं उठाई गई कि सरकार का विरोध केवल दिल्ली के नागरिक ही करेंगे।केजरीवाल ने यह नहीं कहा था कि इंडिया गेट पर मोमबत्तियाँ सिर्फ़ दिल्लीवालों के हाथों में होंगी, जेल केवल दिल्ली वाले ही जाएँगे, डंडे भी केवल वे ही खाएँगे।
संकुचित राष्ट्रवाद
केजरीवाल का ‘प्रांतवाद’ उसी संकुचित ‘राष्ट्रवाद’ का लघु संस्करण है जिसका ज़हर इस समय देश की रगों में दौड़ाया जा रहा है।आज जो ‘मेक इन इंडिया’ का नारा है वह कल को ‘मेक इन दिल्ली’ और ‘मेक इन गुजरात’ में तब्दील हो जाएगा। हो भी रहा है।केरल के पलक्काड में विस्फोटकों से होनेवाली गर्भवती हथिनी की मौत हिमाचल के बिलासपुर में ज़ख़्मी होनेवाली गाय से अलग हो जाती है क्योंकि सरकारें अलग-अलग हैं।
नागरिकों को धर्मों और जातियों में विभाजित करने के बाद अब उनके इलाज की सुविधा को भी उनके रहने के ठिकानों के आधार पर तय किया जा रहा है। यह भी एक क़िस्म का नस्लवाद ही है।
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