कठोर वचन कहने के लिए प्रसिद्ध भारतीय जनता पार्टी के सांसद और पूर्व मंत्री अनुराग ठाकुर ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर हमला करते हुए एक `बड़ी बात’ कह डाली। उन्होंने कहा कि जिन्हें अपनी जाति पता नहीं है वे जाति जनगणना की बात कर रहे हैं। हालांकि वे कह रहे हैं कि उन्होंने यह टिप्पणी किसी का नाम लेकर नहीं की लेकिन पिछड़ों, दलितों के पक्ष में खड़े होकर जाति जनगणना की सबसे मुखर मांग राहुल गांधी ही कर रहे हैं इसलिए बात उन्हें ही लगी। उन्होंने कहा कि चूंकि वे पिछड़ों, दलितों की बात कर रहे हैं इसलिए उन्हें गालियां दी जाएंगी और वे इसके लिए तैयार हैं। जबकि समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने उसका तीखा प्रतिवाद किया। उन्होंने कहा कि संसद में कोई किसी की जाति कैसे पूछ सकता है? जाति पूछे जाने की इस विडंबनापूर्ण स्थिति पर कई उदारवादी बौद्धिकों ने राहुल गांधी को ही जिम्मेदार ठहराया है।
काश हमें अपनी जाति का पता न होता!
- विचार
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- 31 Jul, 2024

राहुल गांधी ने जाति जनगणना कराने की बात कही तो अनुराग ठाकुर ने विवादित बयान दे दिया कि 'जिनकी जाति का पता नहीं वो गणना की बात करते हैं।' अखिलेश भी बोल पड़े कि जाति कैसे पूछ सकते हैं? जानिए, आख़िर जाति को लेकर इतना विवाद क्यों है।
लेकिन संसद से निकलने वाली इस बहस को अगर हम सामाजिक स्तर पर ले जाएं तो एक सुखद स्थिति बनती है। काश इस देश में एक भी ऐसा व्यक्ति होता जिसकी कोई जाति न होती! अगर राहुल गांधी को अपनी जाति पता नहीं है या लोगों को उनकी जाति पता नहीं है तो यह समाज के लिए बेहद आशाजनक स्थिति है। क्योंकि जिस जाति को हिंदू धर्म से लेकर भारत के सभी धर्मों में व्याप्त बताया जाता है उससे कोई तो मुक्त है। लेकिन भाजपा के सांसद ने राहुल गांधी की जाति की बात छेड़कर यह स्वीकार कर लिया है कि सनातन धर्म का ढांचा ही जाति पर टिका हुआ है। बिना जाति के कोई हिंदू हो नहीं सकता। आखिर यही बात तो जाति जनगणना की मांग करने वाले और जाति व्यवस्था का विरोध करने वाले कह रहे हैं। जबकि संघ परिवार का सैद्धांतिक तर्क यह है कि भारत में जाति थी ही नहीं वह तो औपनिवेशिक संरचना है। उनके सारे अकादमिक विद्वान आजकल इसी पर शोध कर रहे हैं। और वे यही सिद्ध करने में लगे हुए हैं।
अनुराग ठाकुर जब यह कहते हैं कि जिनकी जाति का पता नहीं वे जाति जनगणना की बात करते हैं तो वे न सिर्फ एक जातिवादी बयान देते हैं बल्कि जाति पर अध्ययन करने वाले तमाम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय विद्वानों को खारिज करते हैं।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।