इंसान अभी तक ज़िंदा है,ज़िंदा होने पर शर्मिंदा है।
'1984' की बरसी: क़ातिलों को सज़ा तो दूर, पहचान होना भी बाक़ी!
- विचार
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- 3 Nov, 2022

क्या सिख विरोधी दंगे के गुनहगारों और सिखों का क़त्लेआम करने वालों को सजा मिल पाई? आख़िर इसमें कौन लोग शामिल थी और इसकी राजनीति करने वालों में कौन कौन लोग थे?
सांप्रदायिक हिंसा पर पाकिस्तानी नागरिक समाज की चुप्पी पर शाहिद नदीम की पंक्तियाँ। ये पंक्तियाँ जिस गीत में हैं, उसको लिखने और गाने के जुर्म में नदीम को पाकिस्तान की कठमुल्लावादी ज़िया सरकार ने चालीस कोड़े लगवाए थे।
2014 तक राजसत्ता के पाखंड का ब्यौरा
1984 नवम्बर के आरम्भ में हत्यारी टोलियों को खुली छूट देने के बाद, देश में राज कर रही राजीव गाँधी की कांग्रेसी सरकार को, इस क़त्लेआम के ज़िम्मेदार आतंकियों के ख़िलाफ़ क़दम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा था। दंगों' की जाँच के लिए एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी वेद मरवाह के तहत जाँच आयोग 1984 के अंत में नियुक्त किया गया। जब मरवाह आयोग अपनी ‘विस्फोटक’ रपट लगभग तैयार कर चुका था, इसे 1985 के मध्य बर्ख़ास्त कर दिया गया। अब सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड वरिष्ठ न्यायधीश, रंगनाथ मिश्र के अध्यक्षता में '1984 दंगों' पर एक नया आयोग बनाया गया। मिश्र आयोग ने 1987 में अपनी रपट पेश कर दी। इसका सबसे शर्मनाक पहलू यह था कि सरकारी समझ के अनुकूल, आयोग ने जिस सच्चाई (या सच्चाई को दबाने) की खोज की उसके अनुसार, ‘ये दंगे सहज रूप से शुरू हुए लेकिन बाद में इसका नेतृत्व गुंडों के हाथों में आ गया।’ न्यायाधीश मिश्र को बाद में कांग्रेसी सरकार ने 6 साल के लिए राज्यसभा में मनोनीत किया था।