दुनिया का सबसे बड़ा ‘हिंदू’संगठन, आरएसएस के ऊपर ये आरोप लगता है कि वो एक ऐसे विशिष्ट गुरुकुल के रूप में भी कार्य करता है जहां हिंदुत्व कैडरों को सही शिक्षा नहीं दी जाती है, उल्टे इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया जाता है। आलोचक ये आरोप लगाते हैं कि यह आरएसएस की कार्यप्रणाली की पहचान भी है। इसके प्रमाण आरएसएस के सबसे प्रमुख विचारक, गुरु एमएस गोलवलकर के विचार में मिलते हैं जो गाय के नाम पर भारतीय मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा के लिए उन्हें ही ज़िम्मेदार ठहराते हैं। गौ-हत्या के इतिहास पर विचार करते हुए उन्होंने बताया था कि-
ये झूठ है कि ‘मुसलमान राज’ में हिन्दू औरत पराधीन बनी
- विचार
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- 14 Sep, 2023

भारत में महिलाओं की स्थिति अब तक कैसी रही है? महिलाओं की जिस पराधीन स्थिति की बात की जाती है, आखिर वह स्थिति किन वजहों से बनी? जानिए आरआरएस क्या मानता रहा है और इसकी दलीलें क्या रही हैं।
“यह हमारे देश में विदेशी आक्रमणकारियों [मुसलमानों] के आने के साथ शुरू हुआ। लोगों [हिंदुओं] को ग़ुलामी के लिये तैयार करने के लिये उन्होंने सोचा कि हिंदुओं के स्वाभिमान के हर चीज़ का निरादर करो ...उसी सोच के चलते गौहत्या भी शुरू की गई।”
[एमएस गोलवलकर, स्पॉटलाइट, बैंगलोर, साहित्य सिंधु (आरएसएस प्रकाशन गृह), 1974, पृ. 98]
गौहत्या के आरंभ के बारे में इससे बड़ा कोई झूठ नहीं हो सकता क्योंकि वैदिककाल ग्रंथ ब्राह्मणों, देवताओं और ऋषियों के लिए भव्य भोज आयोजित करते समय बड़े पैमाने पर गौहत्या के संदर्भों से भरे हुए हैं। स्वामी विवेकानन्द को आरएसएस द्वारा हिंदुत्व का दार्शनिक माना जाता है, उन्होंने शेक्सपियर क्लब, पासाडेना, कैलिफोर्निया, अमेरिका में एक बैठक को संबोधित करते हुए (2 फरवरी, 1900) घोषणा की:
‘’आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे अगर प्राचीन वर्णनों के आधार पर मैं कहूँ कि वह अच्छा हिंदू नहीं है जो गोमांस नहीं खाता। विशेष अवसरों पर उसे आवश्यक रूप से बैल की बलि देनी होगी और उसे खाना होगा।”
[विवेकानंद, स्वामी विवेकानन्द के संपूर्ण कार्य, खंड 3, अद्वैत आश्रम, कलकत्ता, 1997, पृ. 536.]