वह 17 अगस्त, 2011 की दोपहरी थी। मौसम में गुनगुनापन था। हल्की-फुल्की फुहार झड़ रही थी। इंतज़ार था अन्ना हज़ारे के तिहाड़ जेल से निकलने का। जेल के बाहर भारी भीड़। वह बाहर आते हैं। ‘भारत माता की जय’ के नारों से माहौल गूँज उठता है। फिर उनका कारवाँ चल निकलता है। पूरे रास्ते लहराता तिरंगा, सड़क के दोनों तरफ़ ज़बर्दस्त भीड़। लोगों का हाथ हिलाकर अन्ना हज़ारे को अभिवादन करना। ऐसा दृश्य मैंने नहीं देखा था। लोकतंत्र में इससे बेहतर तसवीर नहीं हो सकती थी। लग रहा था देश में कुछ बदल रहा था। कारवाँ रामलीला मैदान पहुँचता है। उसके बाद अन्ना के आमरण अनशन की औपचारिक शुरुआत। अगले दस दिन तक पूरे देश की नज़र का रामलीला मैदान पर लगे रहना। टीवी पर वाल टू वाल कवरेज।