गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ की वृद्ध नायिका एक दिन अपनी बीमारी और बेहोशी से उठती है और तय करती है कि वह पाकिस्तान जाएगी। उसकी इस सनक भरी ज़िद में उसकी बेटी उसका साथ देती है। दोनों पाकिस्तान पहुंच जाते हैं। वृद्धा के भीतर बंटवारे से पहले की यादें हैं जिन्होंने उसे बिल्कुल एक अलग शख़्स बना डाला है। वह वीज़ा की शर्तें तोड़ खैबर पख़्तूनवा तक चली जाती है। लेकिन पाकिस्तान की एजेंसियां डरी हुई हैं कि यह कोई जासूस न हो। उसे गिरफ़्तार कर लिया जाता है। वहां भी वह जवानों को फटकारती है और उनसे फूल-पौधे लगवाने का काम करती है।
सीमा के आरपार आती-जाती अंजू-सीमा क्या बताती हैं?
- विचार
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- 30 Jul, 2023

क्या कोई भी सीमा इंसान से बड़ी है? क्या दुनिया के मुल्कों की सरहद क्या लोगों को मिलने से रोक पाएगी? क्या इन्हीं वजहों से जब तब दुनिया भर में कई देशाओं की सीमाएँ नहीं बदलनी पड़ जाती हैं?
यह लगभग एक यूटोपियाई कहानी है जिसे ‘रेत समाधि’ में गीतांजलि श्री ने अपनी विशिष्ट शैली में रचा है। लेकिन बीते कुछ दिनों में अजीब ढंग से यह यूटोपिया हमारे समय में घटित होता नज़र आ रहा है। सबसे पहले सीमा हैदर नाम की एक महिला की कहानी सामने आई जो विदेश में रह रहे अपने शौहर को छोड़ कर अपने चार बच्चों सहित नेपाल के रास्ते भारत आ गई और यहां उसने सचिन नाम के एक लड़के के साथ घर बसा लिया। जब वह पचास दिन रह गई तब सुरक्षा एजेंसियों को मालूम हुआ कि यहां तो एक विदेशिनी आकर गृहस्थी संभाले बैठी है। इसके बाद उसे गिरफ़्तार किया गया, फिर उसे एक रहमदिल जज से ज़मानत मिल गई, लेकिन सुरक्षा एजेंसियां उससे पूछताछ में लगी हैं कि वह जासूस तो नहीं है।