गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ की वृद्ध नायिका एक दिन अपनी बीमारी और बेहोशी से उठती है और तय करती है कि वह पाकिस्तान जाएगी। उसकी इस सनक भरी ज़िद में उसकी बेटी उसका साथ देती है। दोनों पाकिस्तान पहुंच जाते हैं। वृद्धा के भीतर बंटवारे से पहले की यादें हैं जिन्होंने उसे बिल्कुल एक अलग शख़्स बना डाला है। वह वीज़ा की शर्तें तोड़ खैबर पख़्तूनवा तक चली जाती है। लेकिन पाकिस्तान की एजेंसियां डरी हुई हैं कि यह कोई जासूस न हो। उसे गिरफ़्तार कर लिया जाता है। वहां भी वह जवानों को फटकारती है और उनसे फूल-पौधे लगवाने का काम करती है।