ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बीजेपी की हिंदुत्ववादी ध्रुवीकरण की राजनीति उसे किस पैमाने पर कामयाबी दिला सकती है। राष्ट्रवाद की आड़ में मुसलिम विरोध का कार्ड चलकर वह एक ही झटके में न केवल अपनी सफलता को कई गुना बढ़ा सकती है बल्कि स्थापित दलों में भय का संचार भी कर सकती है। अब वह तेलंगाना जीतने का ही दावा नहीं कर रही है, बल्कि पूरे दक्षिण भारत में अपनी पैठ बढ़ाने का ख़्वाब भी सँजोने लगी है।
हैदराबाद: ओवैसी की सफलता से ध्रुवीकरण बढ़ेगा?
- विचार
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- 7 Dec, 2020

ओवैसी राष्ट्रीय राजनीति में हिंदू-मुसलिम ध्रुवीकरण के बड़े फैक्टर बन चुके हैं। इसमें सच्चाई हो या न हो, मगर वे हिंदू विरोध के एक प्रतीक के रूप में स्थापित कर दिए गए हैं। हालाँकि अपने विचारों से ओवैसी ने कभी भी हिंदू विरोधी या देश विरोधी नज़रिया ज़ाहिर नहीं किया है, न ही इसलामी सियासत की वकालत करते हुए वे कभी नज़र आए, मगर हिंदुओं का एक हिस्सा उनके नाम से ही बिदकता है और गोदी मीडिया भी उन्हें इसी रूप में पेश करता है।
लेकिन हैदराबाद के चुनाव नतीजों को केवल स्थानीय या क्षेत्रीय संदर्भों में देखना सही नहीं होगा, इसके प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर देखने को मिल सकते हैं। ये नतीजे ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए नई ख़ुराक़ का काम करेंगे। नतीजों ने बीजेपी को ओवैसी फैक्टर का और भी ज़्यादा इस्तेमाल करने का मौक़ा मुहैया करवा दिया है।