भारतीय समाज में जब भी वंचित तबक़े को कुछ सहूलियत देने की बात आती है तो ये नारे लगाए जाते हैं कि अब जातीय घृणा नहीं रह गई है। वहीं जातीय कुंठा और उत्पीड़नों की ख़बरों से देश भर के अख़बार भरे पड़े होते हैं। आश्चर्य तब होता है जब कथित रूप से प्रीमियर कहे जाने वाले संस्थानों में बजबजाते जातिवाद के मामले सामने आते हैं। इस बार एम्स में मामला सामने आया है।
दूर होने का नाम नहीं ले रही जातिवादी कुंठा, एम्स के डॉक्टर फिर बेनकाब
- विचार
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- 20 Jul, 2020
एम्स में अनुसूचित जाति एवं जनजाति सेल समिति द्वारा सौंपी गई एक रिपोर्ट में पाया गया है कि एम्स की महिला डॉक्टर के ख़िलाफ़ जातिगत और लैंगिक टिप्पणी की गई है। उसके सीनियर रेजिडेंट ने महिला चिकित्सक को ‘औकात में रहो’ जैसी टिप्पणियाँ कीं।

अनुसूचित जाति एवं जनजाति सेल समिति द्वारा सौंपी गई एक रिपोर्ट में पाया गया है कि एम्स की महिला डॉक्टर के ख़िलाफ़ जातिगत और लैंगिक टिप्पणी की गई है। उसके सीनियर रेजिडेंट ने महिला चिकित्सक को ‘औकात में रहो’ जैसी टिप्पणियाँ कीं। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़ समिति ने 24 जून को अपनी 17 पृष्ठ की रिपोर्ट एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया को सौंपी और दोषी के ख़िलाफ़ उचित प्रशासनिक और क़ानूनी कार्रवाई करने को कहा जो अस्पताल के सेंटर फ़ॉर डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च (सीडीईआर) से जुड़ा है।