भारतीय समाज में जब भी वंचित तबक़े को कुछ सहूलियत देने की बात आती है तो ये नारे लगाए जाते हैं कि अब जातीय घृणा नहीं रह गई है। वहीं जातीय कुंठा और उत्पीड़नों की ख़बरों से देश भर के अख़बार भरे पड़े होते हैं। आश्चर्य तब होता है जब कथित रूप से प्रीमियर कहे जाने वाले संस्थानों में बजबजाते जातिवाद के मामले सामने आते हैं। इस बार एम्स में मामला सामने आया है।