अरविंद केजरीवाल ने जब राजनीति में धरनों के रास्ते एंट्री मारी थी तो उनकी छवि धरना मास्टर की ही बनी हुई थी। यहां तक कि सीएम बनने के बाद भी वह रेलवे भवन पर सारी रात धरने पर बैठकर यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि उन्हें धरनों से कोई अलग नहीं कर सकता। वह नई तरह की राजनीति की बात कर रहे थे तो यह स्वाभाविक रूप से मान लिया गया था कि केजरीवाल को धरनों से अलग नहीं किया जा सकता। इसीलिए बीजेपी को उन्हें ‘अराजक’ साबित करने में ज्यादा हिचक नहीं हुई थी।
केजरीवाल अब भी धरनों से जुड़े हुए हैं। मगर अब धरनों से वह अपनी राजनीति चलाते हैं। कभी उनमें शामिल होकर और कभी शामिल न होकर। अब एक बार फिर वह एक धरने में शामिल हुए हैं। कुछ दिन पहले वह दिल्ली-हरियाणा सीमा पर सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसानों के धरने में पहुंचे।