loader

बड़ी नाकामियों को दस लाख रोजगार के वादे से ढकने की कवायद

अगले डेढ़ साल में दस लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा एक ऐसे समय पर आया है जब बहुत से नौजवान या तो इसकी उम्मीद छोड़ चुके हैं या एक बड़ी संख्या रोजगार पाने की उम्र को ही पार कर चुकी है। यह जरूर है कि इससे सरकार समर्थकों को एक ढोल मिल गया है जिसे वे अगले आम चुनाव तक वोट बटोरने के लिए लगातार पीट सकते हैं। कोई नहीं जानता कि ये नौकरियां कहां, कैसे, किन्हें और कब मिलेंगी।

सवाल पूछना भूल चुके समाज में ऐसे प्रश्नों की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने के वादे की याद तो अब बस व्यंग्य में ही दिलाई जाती है, पूरी गंभीरता से इस पर कोई बात भी नहीं करता। भाजपा सांसद वरुण गांधी जरूर पूछ रहे हैं कि दस लाख ही क्यों बाकी सरकार में विभिन्न जगहों पर खाली पड़े बाकी स्वीकृत पदों को क्यों नहीं भरा जा रहा। लेकिन उनके इस बयान का इस्तेमाल भी उनके पार्टी से उनके असंतोष को दिखाने के लिए हो रहा, न कि सरकारी नौकरियों पर कोई विमर्श शुरू करने के लिए। 

खाली पड़े सरकारी पदों को भरना कभी मौजूदा सरकार की प्राथमिकता में रहा नहीं। अगर रहा होता तो इसका बड़ा प्रचार भी होता। उलटे इस दौरान यह काम इस दौरान काफी धीमा हो गया। भर्ती के लिए जो परीक्षाएं इस दौरान हुईं भी उनमें भी कईं के नतीजे महीनों तक टाले गए। ज्यादातर राज्यों में भी यही हो रहा है। 

2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी ने मिनिमम गवर्नमेंट का जो वादा किया था शायद उसका अर्थ यही था। यहां तक कि हर साल तीनों सेनाओं से 60 हजार के आस-पास जो जवान रिटायर होते हैं उनकी जगह भरने के लिए होने वाली नियुक्तियां भी पिछले दो साल से बंद हैं। जिसकी भरपाई के लिए अब अग्निपथ योजना लाई गई है।
बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने राज्य में सभी खाली पड़े सरकारी पदों को भरने का वादा किया था तो उन्हें खासा समर्थन भी मिला। इसी समर्थन के बल पर वे विधानसभा में सबसे बड़ा दल बनकर उभरे लेकिन सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सके। उनकी इस नाकामी से यह उम्मीद खत्म हो गई कि खाली पड़े सरकारी पदों पर देश भर में कोई नई राजनीति शुरू हो सकेगी। 
ताज़ा ख़बरें

लेकिन आठ साल बाद ऐसा क्या हो गया कि केंद्र सरकार को खाली सरकारी पदों को भरने की सूझी? वह भी तब जब ऐसा करने की तत्काल कोई आपातकालिक स्थिति नहीं थी। 

पिछली तमाम सरकारों की तरह से ही नरेंद्र मोदी सरकार भी शुरू से ही यह मान कर चल रही थी कि रोजगार के ज्यादातर अवसर निजी क्षेत्र में ही पैदा होंगे। 2014 के पहले के तमाम दशक देखें तो यही हुआ भी था। इसके लिए इस सरकार ने मेक इन इंडिया और स्किल डेवलपमेंट जैसी योजनाएं बनाई थीं। नीति आयोग के शुरू के दस्तावेज देखें तो रोजगार के मामले में वहां सिर्फ इन्हीं दो चीजों की ही बात होती है। उम्मीद यह थी कि मैन्युफैक्चिरिंग सैक्टर तेजी से बढ़ेगा और देश के बड़ी आबादी की रोजी-रोटी इसी से चलेगी। यह लक्ष्य भी रखा गया था कि अगले दस साल में मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में दस करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा। लेकिन हुआ इसका उलटा। जीएसटी और नोटबंदी ने सारा खेल बिगाड़ दिया।

10 Lakh jobs BY Modi Government in 18 months - Satya Hindi
साल 2016-17 में देश की 5.1 करोड़ आबादी मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में काम कर रही थी। नोटबंदी के बाद एक साल के भीतर इनकी संख्या घटकर 3.94 करोड़ हो गई। जिसे मास्टर स्ट्रोक कहा गया उसने एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों को बेरोजगार कर दिया। यह एक ऐसा झटका थी जिसकी भरपाई अगले तीन साल में भी नहीं हो सकी।
विचार से और खबरें

2020 में जब महामारी ने दस्तक दी तो सिर्फ चार करोड़ लोग ही मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में काम कर रहे थे। लाकडाउन के झटके के बाद इनकी संख्या घटकर 2.73 करोड़ पर आ गई। यानी दुगना करने का लक्ष्य जरूर था लेकिन मैन्युफैक्चरिंग में काम करने वालों की संख्या आधी हो गई। पहले की तरह इस बार भी कोई भरपाई नहीं हुई। कम या ज्यादा यही दूसरे क्षेत्रों में भी हुआ है। 

दरअसल रोजगार ही ऐसा क्षेत्र है जहां सरकार के पास कहने तक के लिए कोई उपलब्धि नहीं है। जो स्थितियां हैं उनमें बहुत उम्मीद भी नहीं है। अगले आम चुनाव और उसके पहले होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सरकार ने अब दस लाख नौकरियों का एक तर्क खड़ा कर लिया है। यह सिर्फ युवाओं को लुभाने के लिए ही नहीं है बल्कि सरकार की आर्थिक मोर्चे पर बहुत सी नाकामियों को छुपाने के लिए भी है। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
हरजिंदर
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें