हालिया टीआरपी घोटाले के मद्देनज़र ब्रॉडकास्टिंग ऑडिएंस रिसर्च कौंसिल यानी बार्क ने दो से तीन महीने तक के लिए न्यूज़ चैनलों की टीआरपी न देने का एलान किया है। उसका कहना है कि वह इस दौरान अपनी रेटिंग प्रणाली में सुधार करेगा। बार्क की घोषणा से यही लगता है कि वह टीआरपी मापने के लिए लगाए जाने वाले मीटर, जिन्हें वह बैरोमीटर कहता है, के दुरुपयोग की गुंज़ाइश कम या ख़त्म करने का इरादा रखता है। अगर ऐसा है तो बार्क उन बड़े सुधारों से बचने की कोशिश कर रहा है जिसकी सख़्त ज़रूरत है।
आधे-अधूरे सुधारों से कैसे सुधरेगी टीआरपी मापने की प्रणाली?
- मीडिया
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- 16 Oct, 2020

बार्क का बोर्ड आत्म-संतुष्ट होकर बैठा हुआ है और वह केवल दिखावटी सुधारों में दिलचस्पी रखता है। उसका नेतृत्व अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए बड़े सुधारों के ख़िलाफ़ खड़ा है। मार्केट रिसर्च एक लगातार विकसित होती प्रणाली है। नित नई टेक्नोलॉजी उसे नई धार और दिशा प्रदान कर रही है, मगर बार्क उसके साथ चलने से हिचक रहा है। इसका नतीजा यह होगा कि ऐसे टीआरपी घोटाले आगे भी होते रहेंगे।
यह सही है कि बैरोमीटर की गोपनीयता भंग होने और उसके ज़रिए टीआरपी में छेड़छाड़ की समस्या बहुत गंभीर है। रिपब्लिक टीवी और दो मराठी चैनलों द्वारा यही किए जाने के आरोप हैं और इस वज़ह से टीआरपी की विश्वसनीयता पर ज़बर्दस्त धक्का लगा है। फिर यह पहली बार नहीं हुआ है। इसकी शिकायतें लगातार आती रही हैं, मगर बार्क इस दिशा में कुछ ठोस कर नहीं पाया है।