पिछले डेढ़-दो दशकों से पत्रकारों और आम अवाम के बीच टीआरपी एक अति-निंदनीय शब्द बना हुआ है। हर मंच से, हर सभा-सेमिनार में और आम बातचीत में जब भी न्यूज़ चैनलों का ज़िक्र होता है, टीआरपी एक खलनायक की तरह उपस्थित हो जाती है। टीआरपी को एक दैत्य की तरह देखा जाता है, उसे टेलीविज़न की हर बुराई के लिए कोसा जाता है और कामना की जाती है कि इसका वध हो जाए तो दुनिया सुखद हो जाएगी।
TRP का दुष्चक्र-1: बाज़ार से आया टीआरपी का ‘राक्षस’
- मीडिया
- |
- |
- 31 Oct, 2020

मुंबई पुलिस ने जब प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर दावा किया कि उसने 'टीआरपी घोटाले' का भंडाफोड़ किया है और उसमें रिपब्लिक सहित तीन चैनलों के नाम लिए तो टीवी की दुनिया में हंगामा मच गया? सवाल उठा यह टीआरपी घोटाला क्या है? इसे किसने पैदा किया या मजबूरी क्या है? इसका क्या नुक़सान है? सत्य हिंदी इस विवाद पर एक शृंखला प्रकाशित कर रहा है। पेश है, इसकी पहली कड़ी।
लेकिन क्या ऐसा है, क्या सचमुच में टीआरपी ही वह राक्षस है जो टेलीविज़न की तमाम अच्छाइयों का भक्षण कर जाती है और उसके सिवा कोई दूसरा गुनहगार नहीं है?