आर्थिक उदारवाद की आँधी, बाज़ार का दबाव और प्रभाव ये सब मिलकर मीडिया का चरित्र बदल ही रहे थे मगर इसका सीधा असर पत्रकारिता पर भी पड़ रहा था। यानी मीडिया इंडस्ट्री में जो नए समीकरण बन रहे थे वे एक ओर मीडिया का विस्तार कर रहे थे और दूसरी तरफ़ पत्रकारिता को हाशिए पर भी धकेल रहे थे। मीडिया उद्योग पत्रकारिता का मुखौटा पहनकर धंधेबाज़ी कर रहा था। आइए अब यह समझते हैं कि वह ऐसा कैसे कर रहा था।