आर्थिक उदारवाद की आँधी, बाज़ार का दबाव और प्रभाव ये सब मिलकर मीडिया का चरित्र बदल ही रहे थे मगर इसका सीधा असर पत्रकारिता पर भी पड़ रहा था। यानी मीडिया इंडस्ट्री में जो नए समीकरण बन रहे थे वे एक ओर मीडिया का विस्तार कर रहे थे और दूसरी तरफ़ पत्रकारिता को हाशिए पर भी धकेल रहे थे। मीडिया उद्योग पत्रकारिता का मुखौटा पहनकर धंधेबाज़ी कर रहा था। आइए अब यह समझते हैं कि वह ऐसा कैसे कर रहा था।
TRP का दुष्चक्र-2: पत्रकारिता का बेड़ा गर्क
- मीडिया
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- 27 Oct, 2020

मुंबई पुलिस के 'टीआरपी घोटाले' के भंडाफोड़ से टीवी की दुनिया में हंगामा मच गया। सवाल उठा यह टीआरपी घोटाला क्या है और इसे किसने पैदा किया या मजबूरी क्या है? इसका क्या नुक़सान है? सत्य हिंदी इस पर एक शृंखला प्रकाशित कर रहा है। पहली कड़ी में पढ़ा कि कैसे टीआरपी को बाज़ारवाद और आर्थिक उदारवाद ने जन्म दिया। दूसरी कड़ी में पढ़िए, कैसे इसने टीवी चैनलों को अपनी चपेट में लिया...
टीआरपी चैनलों के लिए ख़ुदा तो नहीं मगर ख़ुदा से कम भी नहीं है। हम इस बात को बख़ूबी समझ चुके हैं और यह भी कि न्यूज़ चैनल टीआरपी के लिए कुछ भी कर सकते हैं, किसी भी हद तक जा सकते हैं। कोई भी झूठ बोल सकते हैं, कोई भी ड्रामा रच सकते हैं। लेकिन यह जानने की ज़रूरत है कि यह स्थिति क्यों और कैसे बनी।