मीडिया में क्या दलितों, पिछड़ों को सही प्रतिनिधित्व मिला है? क्या निर्णय लेने वाली जगहों पर अगड़ी जाति के लोगों का कब्जा है? यदि ऐसा है तो क्या ख़बरों या लेखों में दलितों और पिछड़ों के मुद्दों को उचित जगह मिल पाती होगी?