वह रामभक्त है मगर उन्हें ईश्वर नहीं, महापुरुष मानता है। वह हिंदू धर्म और संस्कृति का प्रेमी है मगर उसकी कमियों से आँखें नहीं चुराता। वह हिंदूवादी है मगर मुसलिम-द्वेषी नहीं है। मेरे मन में भक्तों और राष्ट्रवादियों की जो छवि थी, वह उससे थोड़ा अलग है।
'पत्रकारिता करने आया था, दलाली नहीं करूँगा'
- मीडिया
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- 1 Oct, 2021

सत्ता और मीडियाकर्मियों के संबंधों पर आजकल कुछ ज़्यादा ही सवाल उठ रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी पत्रकार हैं जो अपनी पत्रकारिता से किसी भी क़ीमत पर समझौता नहीं करना चाहते हैं। पढ़िए, एक ऐसे ही पत्रकार की दास्तां जिन्हें समझौता नहीं करने की क़ीमत चुकानी पड़ी।
पाँच-छह साल पहले जब पहली बार मेरा उसका सामना हुआ तो मैं संपादक-नियोक्ता की कुर्सी पर बैठा हुआ था और वह उम्मीदवार की कुर्सी पर। जहाँ तक मुझे याद है, उसने अपने माथे पर टीका लगाया हुआ था। इंटरव्यू में भी वह मुझे घोर परंपरावादी लगा। पहली नज़र में उसने मुझे विकर्षित ही किया। लेकिन जिन 50-60 उम्मीदवारों की कॉपियाँ मैंने और मेरे साथी ने देखी थीं, उनमें इसकी कॉपी सबसे अच्छी थी। मैं किसी योग्य उम्मीदवार को केवल इसलिए नहीं छाँट सकता था कि उसकी विचारधारा मुझसे नहीं मिलती थी। अगर ऐसा होता तो मैं भी 1985 में नवभारत टाइम्स में नहीं आ पाता क्योंकि मेरी और तत्कालीन प्रधान संपादक राजेंद्र माथुर की विचारधारा बहुत अलग थी।