महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन को लेकर तेज़ी से बदल रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच कांग्रेस नेतृत्व ने फ़िलहाल 'देखो और इंतज़ार करो' की नीति पर चलने का फ़ैसला किया है। महाराष्ट्र के नेता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मिलने आए थे। महाराष्ट्र के नेताओं ने कांग्रेस संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से मुलाक़ात के बाद कहा कि महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर जो भी हालात पैदा हुए हैं उसके लिए पूरी तरह से बीजेपी ज़िम्मेदार है। उन्होंने कहा कि सही वक़्त आने पर पार्टी सही फ़ैसला करेगी।
महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष बालासाहेब थोराट ने पत्रकारों से कहा कि अभी तक कांग्रेस आलाक़मान और राज्य इकाई ने शिवसेना को समर्थन देने के बारे में न तो विचार-विमर्श किया है और न ही कोई रणनीति बनाई है। पार्टी सिर्फ़ महाराष्ट्र में तेज़ी से बदलते घटनाक्रम पर पैनी नज़र रख रही है।
महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से क़रीब घंटे भर तक विचार-विमर्श किया। हालाँकि ये नेता कांग्रेस अध्यक्ष अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मिलने आए थे, लेकिन सोनिया से उनकी मुलाक़ात नहीं हो सकी। बताया जा रहा है कि सोनिया गाँधी ने इन नेताओं को संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से मिलकर अपनी बात कहने को कहा था। इन नेताओं में बालासाहेब थोराट, अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण, विजय वेडिटवार, माणिकराव ठाकरे शामिल हैं।
बता दें कि महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी और शिवसेना में तनातनी चल रही है। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर बीजेपी शिवसेना को 50-50 फ़ॉर्मूले के तहत ढाई साल के लिए पहले मुख्यमंत्री पद देने के लिए राज़ी नहीं हुई तो कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन शिवसेना को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवा सकता है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने वाले दिन यानी 24 अक्टूबर से ही इस तरह की चर्चा महाराष्ट्र और दिल्ली के राजनीतिक हलकों में चल रही है। जिस तरह शिवसेना सत्ता की साझेदारी की अपनी माँग पर अड़ी हुई है उससे लगता है कि उसने बीजेपी का साथ छोड़कर वैकल्पिक सरकार बनाने का मन बना लिया है और शरद पवार के माध्यम से कांग्रेस का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है। लेकिन कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोल कर महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन को लेकर बने सस्पेंस को और बढ़ा दिया है।
महाराष्ट्र विधानसभा का गणित
ग़ौरतलब है कि महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं। बहुमत का आँकड़ा 145 है। बीजेपी के पास 105, शिवसेना के पास 56 हैं। दोनों को मिलाकर पूर्ण बहुमत बनता है। एनसीपी के पास 54 और कांग्रेस के पास 44 सीटें हैं। बाक़ी बची सीटों में से 13 पर छोटी पार्टियाँ जीती हैं और 12 पर निर्दलीय विधायकों ने जीत हासिल की है।
शिवसेना का वैकल्पिक फ़ॉर्मूला
शिवसेना वैकल्पिक सरकार के फ़ॉर्मूले पर काम कर रही है। इसके तहत वह बीजेपी से गठबंधन तोड़कर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन से समर्थन लेने की फिराक में है। अगर ऐसा होता है तो शिवसेना के 56 विधायक हैं, एनसीपी के 54 और कांग्रेस के 44 विधायक मिलकर 150 हो जाते हैं। यह आँकड़ा सरकार बनाने के लिए ज़रूरी 145 से ज़्यादा है। शिवसेना को कुछ निर्दलीय विधायकों के साथ ही ऐसी छोटी पार्टियों का समर्थन भी हासिल है जिनके पास एक या दो सीटें हैं। अगर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए शिवसेना को समर्थन देने के लिए राज़ी हो जाता है तो आसानी से वैकल्पिक सरकार बनाई जा सकती है। कांग्रेस आलाक़मान फ़िलहाल इस फ़ॉर्मूले के राजनीतिक नफ़े-नुक़सान पर विचार-मंथन कर रहा है।
हालाँकि अभी यह साफ़ नहीं है कि शिवसेना ने कांग्रेस से सीधे समर्थन माँगा है या नहीं। क्या वह शरद पवार से ही समर्थन के बारे में विचार-विमर्श कर रही है। कुछ दिन पहले पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा था कि अगर शिवसेना की तरफ़ से समर्थन माँगा जाता है तो इस बारे में आलाक़मान के साथ विचार-विमर्श किया जाएगा। महाराष्ट्र के तमाम बड़े कांग्रेसी नेता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मुलाक़ात करने दिल्ली तो आए लेकिन अभी यह साफ़ नहीं है कि शिवसेना के नेताओं से उनकी सीधी बातचीत हुई है या नहीं, या जो भी बातचीत हो रही है वह शरद पवार के माध्यम से हो रही है।
इससे पहले मुंबई से यह ख़बर आई थी कि एनसीपी नेता शरद पवार ने राज्य के कांग्रेसी नेताओं से कहा है कि वे शिवसेना को समर्थन देने के बारे में पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से हरी झंडी ले लें। इसी के बाद महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मिलने दिल्ली आए थे।
कांग्रेस आलाक़मान के सूत्रों के मुताबिक़ सभी कांग्रेसी अभी शिवसेना को समर्थन देने को लेकर पशोपेश में हैं। कांग्रेस बीजेपी के साथ अपनी सैद्धांतिक और व्यावहारिक लड़ाई बताती है। हिंदुत्व को लेकर बीजेपी और शिवसेना की सोच एक जैसी है। इसीलिए दोनों के बीच बरसों से गठबंधन चला आ रहा है। कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है कि अगर वह शिवसेना की सरकार को समर्थन देती है तो फिर आरएसएस और शिवसेना के साथ उसकी वैचारिक लड़ाई का क्या होगा?
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