आज फिर एक बार देश को मनमोहन सिंह जैसे नेता की ज़रूरत है, यह कांग्रेस नहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार का कहना है जिनका देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने राजनीतिक गुरु के रूप उल्लेख किया है। हालाँकि पवार प्रधानमंत्री की इस बात से सहमत नहीं हैं और कहते हैं कि हम राजनेता अपनी सुविधा के अनुसार कभी भी किसी को अपना गुरु या किसी और संबोधनों से संबोधित कर देते हैं।
सामना के कार्यकारी संपादक और राज्यसभा सदस्य संजय राउत को दिए साक्षात्कार में पवार ने कहा कि कोरोना संकट के कारण यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो रही है और इसे बचाने के लिए मोदी को आर्थिक विषयों के जानकार लोगों से सलाह-मशवरा करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वह भी प्रधानमंत्री नरसिंह राव के मंत्रिमंडल के सदस्य थे जिसमें मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे। मनमोहन सिंह ने उस समय आर्थिक संकट से देश को निकालने के लिए अर्थव्यवस्था को एक दायरे से बाहर निकालकर उसके नए पैमाने निर्धारित किये। उन पैमानों का ही परिणाम है कि देश की अर्थव्यवस्था सुधरी थी और हम विकास के मार्ग पर तेज़ी से आगे बढ़े थे। लेकिन आज फिर आर्थिक संकट है और ऐसे में आर्थिक क्षेत्र के जानकार लोगों से बातचीत कर मोदी को आगे की रणनीति निर्धारित करनी चाहिए।
पवार ने कहा कि मोदी सरकार का जो मंत्रिमंडल या उनके इर्दगिर्द का जो सेटअप है उनमें से उनके अनेक सहयोगी ऐसे हैं जिन्हें इन परिस्थितियों में कैसे काम किया जाए इस बात का अनुभव नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे संकट के इस समय में विरोधी दलों के नेताओं से भी चर्चा करें जिनको इस मामले में अच्छा अनुभव है।
उन्होंने कहा, ‘हम जैसे अलग विचार रखने वाले लोगों का उनके यहाँ प्रवेश नहीं है, इसलिए यह नहीं कह सकता कि सरकार के मंत्री जानकार लोगों की सलाह लेते हैं या नहीं! लेकिन यदि सलाह लेते हैं तो उसके परिणाम तो कहीं नज़र नहीं आ रहे।’ उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के काम करने का शायद ऐसा ही तरीक़ा होता है, शायद वर्तमान सरकार के मंत्रियों का भी यही तरीक़ा हो!
संकट के दौर में कोई पार्टी अकेले यह दावा करे कि वही सबकुछ कर लेगी, ऐसा संभव नहीं होता है।
पवार ने कहा कि इनसे पहले प्रणब मुखर्जी, पी. चिदंबरम और मनमोहन सिंह जैसे वित्त मंत्री हुआ करते थे, वे सिर्फ़ सत्ताधारी दलों के नेताओं से ही नहीं आर्थिक मामलों के जानकारों और विपक्षी दलों के नेताओं से आर्थिक मामलों पर घंटों चर्चा करते थे। लेकिन वर्तमान वित्त मंत्री से मेरी आज तक न कोई मुलाक़ात हुई है न ही किसी प्रकार की कोई चर्चा’।
कोरोना की वजह से पिछले तीन महीनों में राज्यों का राजस्व क़रीब पचास प्रतिशत से अधिक कम हुआ है, ऐसे में केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह राज्यों को आधार दे। एनसीपी नेता पवार कहते हैं कि राज्यों के पास आय के निर्धारित स्रोत हैं तथा विदेशों या रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया तथा अन्य बैंकिंग संस्थानों से कर्ज लेने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उन पर रोक लगाई गई है। ऐसे में यदि राज्यों की अर्थव्यवस्था चौपट होती है जो कि दिख रही है तो उसका परिणाम केंद्र पर भी पड़ेगा ही। आख़िर राज्यों से ही तो केंद्र सरकार की आय होती है।
अपनी राय बतायें