महाराष्ट्र में चार दिन के भीतर सरकार गिरने के बाद बीजेपी की ख़ासी किरकिरी तो हो ही रही है, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी गंभीर आरोप लगाकर उसकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। महाराष्ट्र बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और राज्य सरकार में मंत्री रहे एकनाथ खडसे ने एक बार फिर पार्टी नेतृत्व की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। खडसे ने कहा है कि उन्हें, चंद्रशेखर बावनकुले और विनोद तावडे को जानबूझकर विधानसभा चुनाव में प्रचार से दूर रखा गया।
खडसे ने यह भी कहा कि अगर उन्हें और इन वरिष्ठ नेताओं को चुनाव प्रचार में शामिल किया जाता तो बीजेपी राज्य में 20-25 सीटें और जीत सकती थी। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नेताओं को प्रचार से दूर करना पार्टी को महंगा पड़ा। बीजेपी नेता ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने भी रखा था। खडसे बुधवार को महाराष्ट्र के विधान भवन परिसर के बाहर पत्रकारों से बात कर रहे थे।
बीजेपी को विधानसभा चुनाव में 105 सीटें मिलीं थी और शिवसेना के मुख्यमंत्री पद के बंटवारे पर अड़ने के कारण वह सरकार नहीं बना सकी थी। हालाँकि उसने अंतिम समय तक कोशिश की और एनसीपी में तोड़-फोड़ भी की लेकिन वह औंधे मुंह गिर गई और महज 4 दिन के भीतर ही उसके मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
खडसे ने इससे पहले बीजेपी के अजीत पवार का समर्थन लेकर सरकार बनाने के निर्णय पर भी सवाल उठाए थे। खडसे ने कहा था, ‘यह मेरा निजी विचार है कि बीजेपी को अजीत पवार का समर्थन नहीं लेना चाहिए था। अजीत सिंचाई घोटाले में अभियुक्त हैं और उनके ख़िलाफ़ कई आरोप हैं। इसलिए हमें उनके साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए था।’
खडसे महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता जैसे अहम पद पर भी रहे हैं और उन्हें राज्य में ओबीसी समाज का बड़ा नेता माना जाता है।
महाराष्ट्र में सरकार गिर जाने के बाद बुधवार को जब देवेंद्र फडणवीस से इस बारे में पूछा गया था कि क्या अजीत पवार का समर्थन लेना ग़लती थी तो उन्होंने भी इसका सीधा जवाब नहीं दिया था। फडणवीस ने कहा था कि वह इस बारे में सही समय पर सही बात कहेंगे।
फडणवीस ने कटवाया खडसे का टिकट!
एकनाथ खडसे को महाराष्ट्र की राजनीति में फडणवीस का विरोधी माना जाता है। 2014 तक एकनाथ खडसे महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता थे और बीजेपी के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा सबसे प्रबल था। लेकिन कहा जाता है कि मोदी-शाह की पसंद देवेंद्र फडणवीस थे। 2014 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद खडसे एक साल तक मंत्री भी रहे थे लेकिन ज़मीन सौदे में अनियमितता के मामले में उनसे इस्तीफ़ा ले लिया गया।
राज्य सरकार द्वारा इस अनियमितता को लेकर बैठाई गयी जांच समिति की रिपोर्ट में खडसे को क्लीन चिट मिल गयी थी लेकिन सरकार का कार्यकाल ख़त्म होने तक उन्हें मंत्री पद नहीं मिला था। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने खडसे को टिकट ही नहीं दिया और कहा जाता है कि फडणवीस ने ही उन्हें किनारे लगाया था। एकनाथ खडसे की ही तरह वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर बावनकुले, विनोद तावड़े, प्रकाश मेहता, दिलीप कांबले का भी इस बार टिकट काट दिया गया था। ये सभी नेता फडणवीस सरकार में मंत्री थे।
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