'जब राजनीतिक प्रक्रियाओं की हत्या हो रही हो तो कोर्ट मूकदर्शक बना नहीं रह सकता'; 'राष्ट्रपति कोई राजा नहीं होते जिनके फ़ैसलों की समीक्षा नहीं हो सकती, राष्ट्रपति और जज दोनों से भयानक ग़लतियां हो सकती हैं', ये दो टिप्पणियां हैं जो देश की शीर्ष अदालतों द्वारा की गयी हैं। ये टिप्पणियां भी ऐसे मामलों से जुड़ी हैं जब सत्ता के खेल में राज्यपाल और राष्ट्रपति के स्व विवेक के आधार पर लिए गए निर्णयों से सियासी संकट खड़े हुए हैं।
महाराष्ट्र का सत्ता संघर्ष: न्यायपालिका से जनता की अदालत तक
- महाराष्ट्र
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- 26 Nov, 2019

महाराष्ट्र में सत्ता का यह संघर्ष न्यायपालिका के बाहर जनता की अदालत में भी खेला जा रहा है। साथ ही तमाम राजनीतिक दाँव-पेच भी आजमाए जा रहे हैं।
महाराष्ट्र में भी राजनीति या यूं कह लें कि सत्ता का समीकरण या संघर्ष कुछ ऐसे ही दौर से गुजर रहा है। सबकी नजरें अदालत पर टिकीं है कि क्या वह ऊपर लिखी हुई अपनी ही टिप्पणियों को आधार बनाते हुए कुछ इस तरह का आदेश देगी कि बार-बार होने वाले इस स्व विवेक के सवाल पर विराम लग जाये या कोई फौरी आदेश देकर स्थिति को सुलझाने का फ़ैसला करेगी।