पंकजा की ये महत्तवाकांक्षी घोषणाएं दो सवाल खड़ी करती हैं। क्या वह बीजेपी में रहकर ऐसा करने वाली हैं या अपनी अलग पार्टी बनाकर? पंकजा मुंडे को लेकर ये सवाल एक साल पहले भी उठे थे, लेकिन हुआ कुछ नहीं।
ठाकरे को बताया बड़ा भाई
दरअसल अपने पिता की विरासत वाली सीट पर अपने चचेरे भाई के हाथों पराजय का दंश झेल चुकी पंकजा मुंडे ने हार के बाद अपने पिता द्वारा बनाये गए संगठन 'गोपीनाथ मुंडे प्रतिष्ठान' को फिर से सक्रिय करने और उसके माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक कार्य करने की घोषणा की थी। उस समय देवेंद्र फडणवीस से उनके टकराव के चलते बीजेपी छोड़ने की खबरें गर्म थीं। लेकिन बीजेपी ने पंकजा मुंडे को राष्ट्रीय संगठन में जगह दे दी और क़रीब एक साल बाद वह सक्रिय हुईं तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपना बड़ा भाई बताया।ओबीसी चेहरा
पंकजा के पिता गोपीनाथ मुंडे महाराष्ट्र में ओबीसी समाज के कद्दावर नेता हुआ करते थे। मुंडे के नेतृत्व में एकनाथ खडसे ने भी ओबीसी वर्ग में अपनी पकड़ मज़बूत की थी, लेकिन आज खडसे बीजेपी छोड़ गए हैं।क्या पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व अपने ओबीसी आधार को बनाये रखने के लिए महाराष्ट्र में पंकजा मुंडे को आगे लाने की रणनीति पर काम कर रहा है?
यह सवाल देवेंद्र फडणवीस को बिहार के विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाये जाने के बाद से ही उठने लगा था कि प्रदेश में बीजेपी के नेतृत्व की डोर क्या किसी और के हाथों में जानी वाली है?
संगठन में परिवर्तन
ये खबरें भी गर्म हैं कि बिहार चुनाव के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में होने वाले फेरबदल में देवेंद्र फडणवीस को भी स्थान मिल सकता है। ऐसा करके शायद बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व महाराष्ट्र में संगठन में देवेंद्र फडणवीस की कार्यशैली को लेकर उठने वाले विवादों पर अंकुश लगाने की कोशिश करे। सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी में देवेंद्र फडणवीस पर लगातार यह आरोप लग रहा है कि वह अपनी टीम बनाने के लिए पुराने नेताओं व कार्यकर्ताओं को हाशिये पर धकेल रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण एकनाथ खडसे विनोद, तावड़े, चंद्रशेखर बावनकुले जैसे नेता हैं, जिन्हें विधानसभा के टिकट ही नहीं दिए गए।ठाकरे की रणनीति
केंद्र सरकार की तरफ से जितना दबाव इस सरकार पर बढ़ रहा है उतनी ही अधिक मजबूती इसके घटक दलों में बढ़ती जा रही है।मुंबई और प्रदेश की अन्य महानगरपालिकाओं के चुनाव साथ मिलकर लड़ने की अब जो ख़बर आ रही है, वह यह संकेत दे रही है कि बीजेपी को अब स्थानीय निकाय संस्थाओं से सत्ता से बाहर करने की रणनीति ठाकरे सरकार ने बना ली है।
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