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महाराष्ट्र के प्रचार से गडकरी ग़ायब, क्या किनारे लगाये जायेंगे?

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों के ठीक पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी की कम्बोडिया यात्रा को लेकर तमाम मीडिया में ख़बरें छायी रही थीं। महाराष्ट्र में चुनावी सभा में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से लेकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तो अपने भाषणों में उनकी विदेश यात्रा का ज़िक्र किया और कहा कि 'कांग्रेस के सेनापति तो लड़ाई से पहले ही मैदान छोड़ गए'। लेकिन महाराष्ट्र के इस चुनावी शोर में भारतीय जनता पार्टी का एक धड़ा ठीक वैसे ही ग़ायब हो गया है जैसे 2014 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मंच पर वर्षों नज़र आने वाले नेता!

लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता मोदी सरकार 1.0 में मार्गदर्शक मंडल में भेज दिए गए तो सुमित्रा महाजन जैसी नेताओं की राजनीति पर मोदी सरकार 2.0 में विराम लगा दिया गया। कल्याण सिंह, कलराज मिश्र, भगत सिंह कोश्यारी, जयंती बेन पटेल को राज्यपालों की कुर्सियों तक समेट दिया गया। कुछ ऐसा ही फ़ॉर्मूला शायद महाराष्ट्र में भी लगाया गया है। प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे के संघर्ष के दौर वाली भारतीय जनता पार्टी के नेता आज प्रदेश के राजनीतिक मंच के नेपथ्य में नज़र आते हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम है केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का।

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मोदी सरकार 1.0 में सबसे ज़्यादा किसी मंत्रालय के काम को सराहा गया था तो वह था नितिन गडकरी का जहाजरानी और भू-तल परिवहन मंत्रालय। लेकिन मोदी 2.0 में गडकरी के उस मंत्रालय का आकार ही छोटा कर दिया गया। जहाजरानी और बंदरगाह से सम्बंधित कामकाज उनके पास से हटा लिया गया। इस कटौती को लेकर महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में जो चर्चाएँ होती हैं उनका लब्बोलुआब यही रहता है कि महाराष्ट्र और गुजरात में से किस प्रदेश के बंदरगाहों को अधिक विकसित करना चाहिए ताकि वहाँ पर अतिरिक्त व्यावसायिक गतिविधियाँ बढ़ सकें। कहा जाता है कि गडकरी ने इस मामले में महाराष्ट्र और ख़ासकर मुंबई को प्राथमिकता दी। लिहाज़ा उनसे यह विभाग ही ले लिया गया।

महाजन और मुंडे के बाद महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी में पिछली पीढ़ी का सबसे बड़ा चेहरा नितिन गडकरी ही थे। महाराष्ट्र में जीत के बाद गडकरी मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार थे, लेकिन उन्हें दिल्ली की राजनीति में बुला लिया गया। पूरे पाँच साल तक बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व गडकरी को महाराष्ट्र से दूर रखने में सफल भी रहा। इस बार टिकट बँटवारे की पूरी ज़िम्मेदारी में देवेंद्र फडणवीस को आगे रखकर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने गडकरी समर्थकों के टिकट काटने का भी काम किया। 

गडकरी के निकट माने जाने वाले तीन मंत्रियों को टिकट नहीं दिया गया तथा क़रीब 9 विधायकों के भी टिकट काटे गए। गडकरी और फडणवीस दोनों महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र से आते हैं लेकिन पिछली बार प्रदेश में सत्ता में आने से पहले तक फडणवीस के मुक़ाबले गडकरी का कद राजनीति में काफ़ी ऊँचा था।

गडकरी महाराष्ट्र के एकमात्र ऐसे नेता हैं जो भारतीय जनता पार्टी के उस दौर में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने जहाँ से पार्टी को सत्ता की तरफ़ ले जाने की एक उड़ान भरनी थी। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री प्रत्याशी के रूप में घोषणा और गडकरी को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाए जाने की घटना के बाद से भारतीय जनता पार्टी में सत्ता का नया दौर शुरू हो गया। लेकिन इस चुनाव में गडकरी कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं। न तो भारतीय जनता पार्टी के प्रचार साहित्य में और न ही चुनावी सभाओं के मंच पर। केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की चुनावी सभाएँ प्रदेश में शुरू हैं लेकिन गडकरी वहाँ भी नज़र नहीं आ रहे हैं। 

गडकरी के तीखे बोल 

ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या पार्टी गडकरी के राजनीतिक सफर पर विराम लगाने की कोशिश कर रही है? मगर भारतीय जनता पार्टी जहाँ बड़े पैमाने पर दूसरी पार्टी के नेताओं को अपने दल में शामिल करने के लिए बेताब दिखती है वह अपनी ही पार्टी के नेता को घेरना क्यों चाहती है? कुछ लोगों का कहना है कि इसके लिए मोदी सरकार को लेकर गडकरी द्वारा दिए गए विवादित बयान भी ज़िम्मेदार हैं। उल्लेखनीय है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनावों में हार के बाद गडकरी ने कहा था, 'सफलता के कई दावेदार होते हैं, लेकिन विफलता में कोई साथ नहीं होता। सफलता का श्रेय लेने के लिए लोगों में होड़ रहती है, लेकिन विफलता को कोई स्वीकार नहीं करना चाहता, सब दूसरे की तरफ़ उँगली दिखाने लगते हैं।' 

यही नहीं, पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान गडकरी ने कहा था, 'मुझे नेहरू के भाषण पसंद हैं'। 'सिस्टम को सुधारने को दूसरे की तरफ़ उँगली क्यों करते हो, अपनी तरफ़ क्यों नहीं करते हो। जवाहर लाल नेहरू कहते थे कि इंडिया इज़ नॉट ए नेशन, इट इज़ ए पॉपुलेशन। इस देश का हर व्यक्ति देश के लिए प्रश्न है, समस्या है। उनके भाषण मुझे बहुत पसंद हैं। तो मैं इतना तो कर सकता हूँ कि मैं देश के सामने समस्या नहीं बनूँगा'।
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यही नहीं, हाल ही में नितिन गडकरी ने नागपुर में एक कार्यक्रम के दौरान अपनी ही सरकार के कार्यों पर सवाल खड़े कर दिए। गडकरी ने कहा कि मैं किसी प्रोजेक्ट को पूरा करने में सरकार की मदद नहीं लेता, क्योंकि जहाँ सरकार हाथ लगाती है वहाँ सत्यानाश हो जाता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि विदर्भ इलाक़ों में किसानों द्वारा आत्महत्याएँ की जाती हैं और हमारे लिए यह अत्यंत शर्म की बात है। यह भी चर्चा है कि गडकरी के इन बयानों की वजह से केंद्रीय नेतृत्व खुश नहीं है। और लगता है पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र की राजनीति से भी बाहर निकालने का मन बना लिया है। सबसे बड़ी बात जो देखने को मिली है वह यह है कि गडकरी की तरफ़ से अभी इस संदर्भ में कोई बयान नहीं आ रहा है।

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संजय राय
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