राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने गुरुवार को दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है। उन्होंने यह फ़ैसला तब लिया है जब अजित पवार खेमे ने दावा किया है कि इसने इस विद्रोह से भी दो दिन पहले ही शरद पवार को पार्टी के अध्यक्ष पद से 'हटा' दिया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार उन्होंने चुनाव आयोग को लिखे अपने पत्र में इसका ज़िक्र किया है। रिपोर्ट के अनुसार बागी खेमे ने उस ख़त में दावा किया है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अजित पवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है।
अजित पवार का यह दावा उस पार्टी के बारे में है जिसे शरद पवार ने स्थापित किया और दो दशकों से भी अधिक समय तक नेतृत्व किया था। एनसीपी के कुल 53 विधायकों में से 29 अजित द्वारा बुलाई गई बागी खेमे की बैठक में मौजूद थे, जबकि शरद पवार खेमे के पास 17 विधायक थे। हालाँकि, बागी खेमा का दावा है कि उसके पास 40 विधायकों का समर्थन है।
भले ही अजित पवार ने अपने चाचा के मुकाबले ज्यादा विधायक जुटाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर दिया है लेकिन दो तिहाई विधायकों का बहुमत अभी भी उनके पास नहीं है। एनसीपी पर दावा जताने के लिए दो-तिहाई का आँकड़ा यानी 36 विधायक उनके साथ होने चाहिए।
एनसीपी में अब जो दो गुट खुलकर सामने आ गए हैं उसको लेकर समझा जाता है कि एनसीपी के प्रमुख शरद पवार और अजित पवार के बीच लंबे समय से मनमुटाव चल रहा था। दोनों के बीच में चल रहा सत्ता संघर्ष पिछले एक साल से शिवसेना में चल रहे संघर्ष जैसा है। अजित ने 2 जुलाई को पार्टी के आठ वरिष्ठ विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे सेना-भाजपा सरकार में शामिल हो गए थे। इससे एनसीपी में दो खेमे बन गए।
पिछले साल जून में शिंदे के विद्रोह से शिवसेना दो खेमों में बँट गई थी। तत्कालीन उद्धव के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई थी।
शिंदे खेमे ने यह भी दावा किया कि उनका गुट असली सेना है। उन्होंने कहा था कि हमारे 56 विधायकों में से 40 और 19 लोकसभा सांसदों में से 12 का समर्थन प्राप्त है। सेना विधायक दल के साथ-साथ संसदीय दल में अपने बहुमत के समर्थन का हवाला देते हुए शिंदे सेना ने शिवसेना के नाम और चुनाव चिन्ह पर दावा किया था। बाद में चुनाव आयोग ने शिंदे सेना को असली माना और नाम व चुनाव चिन्ह भी उन्हें ही आवंटित कर दिया।
जैसा शिवसेना में हुआ था, अब क़रीब-क़रीब उसी तरह की स्थिति एनसीपी में बनी है। लेकिन सवाल है कि क्या शरद पवार एनसीपी और इसके चुनाव चिन्ह पर अपना कब्जा बरकरार रख पाएँगे? क्या वह इस रणनीति में कामयाब हो पाएँगे और खुद को साबित करेंगे कि उद्धव ठाकरे की अपेक्षा वह इस मामले को बेहतर ढंगे से निपट सकते हैं? अब यह मामला चुनाव आयोग पहुँचा है और संभव है कि यह अदालत में भी जाएगा। लेकिन इसमें कौन जीतेगा, वह आने वाला वक़्त बताएगा।
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