महाराष्ट्र विधानसभा से मंगलवार को मराठाओं के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने का विधेयक पास हो गया है। अब इस विधेयक को महाराष्ट्र की शिंदे सरकार विधान परिषद में पेश करेगी। वहां से पास होने के बाद इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा और राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही यह विधेयक कानून बन जाएगा।
विधानसभा से इसे पास कराने के लिए राज्य सरकार ने मंगलवार को एक दिन का विशेष सत्र बुलाया था। इस सत्र का मुख्य एजेंडा मराठा आरक्षण को मंजूरी देना ही था।
विधानसभा के इस विशेष सत्र से पहले सीएम एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी गई थी।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मराठा समुदाय पिछड़ा हुआ है। असाधारण परिस्थितियां होने के कारण 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की आवश्यकता होती है।
मराठाओं को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून बनने बनने के बाद मराठाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। महाराष्ट्र में पहले से ही में 52 प्रतिशत आरक्षण लागू है। अब 10 प्रतिशत मराठा आरक्षण देने के बाद राज्य में कुल आरक्षण अब 62 प्रतिशत हो जाएगा।
हालांकि इसको लेकर कानून बन भी जाता है तो भी मराठाओं को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलने में कानूनी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। आरक्षण का कोटा 50 प्रतिशत से ज्यादा होने के कारण सुप्रीम कोर्ट इसे रद्द कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मई 2021 में भी मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने के फैसले को रद्द कर दिया था। तब भी इसका कारण आरक्षण की यही 50 प्रतिशत सीमा थी।
विधानसभा से इस बिल पास को पास होने के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि हमने जो बोला था वह कर दिखाया है। उन्होंने कहा कि हमने किसी राजनीतिक लाभ के लिए यह फैसला नहीं लिया है।
सीएम शिंदे ने कहा कि मैं एक मराठा किसान का बेटा हूं इसलिए मैं मराठाओं के दर्द को समझता हूं। राज्य का मराठा समाज आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ है।
उन्होंने कहा कि मराठाओं को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलने से ओबीसी या किसी अन्य समाज के आरक्षण को कोई नुकसान नहीं होगा। हम यह भी कोशिश करेंगे कि यह कानूनी बाधाओं से गुजर जाए।
विधानसभा से इसे पास होने के बाद मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे ने कहा कि आरक्षण का कोटा 62 प्रतिशत होने से सुप्रीम कोर्ट इसे खारिज कर देगा। उन्होंने कहा है कि इस विधेयक से मराठाओं की मांग को पूरा नहीं किया गया है।
आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत उपर होने के कारण इसे फिर सुप्रीम कोर्ट रद्द कर देगा और मराठा समाज को यह आरक्षण नहीं मिल पायेगा। उन्होंने कहा कि हमें ऐसा आरक्षण चाहिए जो ओबीसी कोटे में हो और 50 प्रतिशत की आरक्षण की सीमा के अंदर हो।
करीब 37 प्रतिशत मराठा गरीबी रेखा से नीचे हैं
महाराष्ट्र की आबादी का बड़ा हिस्सा मराठाओं का है, लेकिन यह समाज आर्थिक रूप से पिछड़ा है। 2018 में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में करीब 37.28 प्रतिशत मराठा गरीबी रेखा से नीचे हैं। 76.86 प्रतिशत मराठा परिवार कृषि और कृषि श्रम पर अपनी जीविका के लिए निर्भर हैं।
आर्थिक स्थिति खराब रहने के कारण 2013 से 2018 तक करीब 2152 मराठा समुदाय के किसानों ने आत्महत्या की थी। माना जाता है कि इन आत्महत्याओं का मुख्य कारण उनके उपर कर्ज और फसल को हुआ नुकसान था।
मराठा समाज के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए राज्य में काफी समय से आरक्षण की मांग का आंदोलन चल रहा था। अब इस आंदोलन के आंदोलनकारियों की मांगों को राज्य सरकार ने मान लिया है।
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