महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में शिवसेना (शिंदे) और भाजपा को मिली करारी हार के बाद अब मराठा आंदोलनकारी मनोज जरांगे पाटिल राज्य सरकार के लिए नया संकट लेकर आ गए हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव सिर्फ 5-6 महीने दूर हैं और शनिवार से मराठा आरक्षण के लिए जारांगे ने फिर से जालना में भूख हड़ताल शुरू कर दी है। लोकसभा चुनाव के जो नतीजे सामने आए हैं, उससे पता चल रहा है कि मराठा वोट सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन से दूर चला गया है। जालना के अंतरवाली सराती गांव में मनोज के आंदोलन का नया दौर सत्तारूढ़ दलों को और मुश्किल में डालने जा रहा है।हालांकि पुलिस ने इस भूख हड़ताल को अनुमति नहीं दी है लेकिन मनोज जारांगे को चुनौती देना पुलिस के बस की बात भी नहीं है।
राज्य सरकार विशेषकर भाजपा के खिलाफ जारांगे पाटिल का रुख अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए चुनौती पैदा कर सकता है। क्योंकि जरांगे पाटिल ने कहा है कि वे विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ प्रत्याशी उतार सकते हैं।
जारांगे-पाटिल की ताजा भूख हड़ताल इस मांग को लेकर है कि संबंधित परिवार के सेज-सोयारे (ब्लड रिलेशन) को ही कुनबी प्रमाणपत्र जारी किए जाएं। उनका कहना है कि कुनबी प्रमाणपत्र उन मराठों के रिश्तेदारों को दिए जाएं जिनके पास उनके कुनबी होने का बताने वाले पुराने दस्तावेज हों। कुनबी प्रमाणपत्र मिलने के बाद ऐसे लोगों को ओबीसी कोटे का फायदा मिल सकेगा। पिछले साल जारांगे-पाटिल के विरोध प्रदर्शन के बाद राज्य सरकार ने जो अभियान चलाया था, उसमें कुनबी रिकॉर्ड वाले 5.5 मिलियन से अधिक लोग पाए गए हैं। इन सभी को ओबीसी में शामिल करने की मांग की गई है।
चुनाव मैदान में उतरने की तैयारीः मनोज जारांगे पाटिल ने यह भी घोषणा की कि वह सभी 288 विधानसभा क्षेत्रों में धनगर, लिंगायत, मुसलमानों के साथ-साथ मराठों सहित सभी पिछड़े समुदायों से उम्मीदवार उतारेंगे। उन्होंने कहा, ''हमने लोकसभा चुनाव में अपनी ताकत दिखा दी है। विधानसभा चुनाव में इसका ज्यादा असर होगा। अगर हमें आरक्षण नहीं मिला तो पांच से छह पिछड़ी जातियां राज्य चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएंगी। मैं व्यक्तिगत रूप से चुनाव नहीं लड़ूंगा, लेकिन पिछड़े समुदायों से उम्मीदवारों को मैदान में उतारूंगा और सत्तारूढ़ गठबंधन के उम्मीदवारों को खुले तौर पर नाम देकर हराऊंगा।”
किसी पार्टी से समझौता नहीं
मनोज जारांगे पाटिल ने साफ कर दिया है कि "किसी भी पार्टी के लिए काम नहीं किया है या उसके साथ गठबंधन नहीं किया है"। उन्होंने कहा, "हमारी मांगें सेज-सोयारे प्रमाणपत्र जारी करने, पिछले साल धरने में शामिल कार्यकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों को वापस लेने और सरकारी गजट में जटिल नियमों और शर्तों को खत्म करने की हैं, जो उद्यमशील मराठा युवाओं को लोन या फंडिंग देने में बाधा डालती हैं।"
जारांगे पाटिल ने धरने के लिए पुलिस की अनुमति नहीं मिलने पर भी नाखुशी जताई। पाटिल ने कहा कि “पुलिस ने हमें आंदोलन से दूर रखने के लिए कुछ संगठनों द्वारा दिए गए एक ज्ञापन का हवाला दिया। हम भी भाजपा की महाजनादेश यात्रा से लोगों को होने वाली असुविधा का हवाला देते हुए ऐसे ज्ञापन भी जारी कर सकते हैं।''
भाजपा को मराठा वोट नहीं मिलेः भाजपा विधायकों की बैठक में शनिवार को फडणवीस ने लोकसभा चुनाव में मराठा वोटों के प्रभाव के बारे में बात की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सत्तारूढ़ गठबंधन इस नैरेटिव का मुकाबला करने में विफल रहा है कि सरकार मराठों के खिलाफ थी। फडणवीस ने कहा- “हमने मराठों को दो बार आरक्षण दिया, हालांकि 1980 के दशक से इसका विरोध करने वाले विपक्षी दलों को लोकसभा चुनावों में फायदा हुआ। हमने मराठा समुदाय को कई सुविधाएं दीं, इसके बावजूद हमारे खिलाफ झूठी कहानी गढ़ी गई। यह कथा लंबे समय तक नहीं चलेगी।”
मराठवाड़ा में सिर्फ 1 सीट
सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन, जिसने 2019 के आम चुनावों में मराठवाड़ा में आठ में से सात सीटें हासिल की थीं, इस बार सिर्फ एक सीट जीत सका। भाजपा प्रतिष्ठित बीड, जालना और नांदेड़ लोकसभा क्षेत्र हार गई। चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद, सत्तारूढ़ सहयोगियों ने अपनी गलती स्वीकार की है, और फौरन सुधारात्मक कदमों की जरूरत बताई है। यहां यह बताना जरूरी है कि पिछले साल अगस्त में जारांगे-पाटिल ने मराठा आरक्षण आंदोलन शुरू किया था। जिसने राज्य में सारे राजनीतिक समीकरण बदल दिए थे।
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