दोनों मुंडे बहनों के बयान साधारण नहीं है। भाजपा महिला पहलवानों के मुद्दे पर अलग लाइन लेकर चल रही है और अभी तक वो कैसरगंज (गोंडा) के भाजपा सांसद बृजभूषण शरण ,सिंह के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है। बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का आरोप है। दो एफआईआर भी दर्ज है। महिला पहलवान उन्हें गिरफ्तार करने की मांग कर रही हैं। प्रीतम मुंडे ने पार्टी की धारा के विपरीत बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ बयान दिया। महाराष्ट्र का यूपी की राजनीति से क्या लेना देना लेकिन प्रीतम मुंडे के बयान ने पहलवानों के समर्थन का दायरा बढ़ा दिया है।
मुंडे बहनों के बयान महाराष्ट्र बीजेपी और खासकर पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस की राजनीति को भी प्रभावित कर सकते हैं। गोपीनाथ मुंडे एक समय में महाराष्ट्र ओबीसी के बड़े नेताओं में शुमार थे। एक सड़क हादसे में उनका निधन हो गया था। महाराष्ट्र में पार्टी को खड़ा करने में उनका बड़ा योगदान भाजपा खुद मानती है। गोपीनाथ मुंडे की विरासत को उनकी दोनों बेटियों पंकजा और प्रीतम ने संभाला लेकिन इसमें पंकजा सबसे आगे नेतृत्व देती रही। पंकजा को एक समय सीएम मटेरियल भी कहा जाने लगा था। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि देवेंद्र फडणवीस मुंडे परिवार को अपने लिए खतरा मानते रहे हैं, इसलिए फडणवीस ने हमेशा मुंडे परिवार को हाशिए पर रखने की कोशिश की।
दिल्ली में अहिल्यादेवी जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में पंकजा ने कल कहा था कि मैं किसी चीज से नहीं डरती हूं, डरना हमारे खून में नहीं है। अगर कुछ नहीं मिला तो मैं खेत में गन्ना काटने जाउंगी। मैं बीजेपी की हूं लेकिन बीजेपी मेरी थोड़ी है, बीजेपी एक बड़ी पार्टी है। मैं बीजेपी की हो सकती हूं लेकिन बीजेपी मेरी नहीं हो सकती है। पंकजा का यह बयान बता रहा है कि मुंडे परिवार ने अब आरपार की लड़ाई का फैसला कर लिया है। क्योंकि उनका ताजा कदम बहुत रणनीतिक है। 2019 से पंकजा को लगातार हाशिए पर रखा गया। प्रीतम मुंडे को अगले लोकसभा चुनाव 2024 में शायद ही टिकट मिले। ऐसे में मुंडे परिवार की दोनों बहनें अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए खड़ी हो गई हैं।
हालांकि इस नाराजगी को एक और घटना से भी जोड़ा जा रहा है। पंकजा मुंडे की चीनी मिल पर 14 अप्रैल, 2023 को जीएसटी के अधिकारियों ने छापा मारा। यह छापेमारी जीएसटी चोरी के आरोप में थी। छापेमारी के बाद पंकजा मुंडे ने कहा, ‘मैंने जीएसटी अधिकारियों से बात की और मैंने उनसे पूछा कि अचानक से ऐसा कदम क्यों उठाया गया। इस पर उनका जवाब था कि ऊपर से एक आदेश था। उस समय शिवसेना यूबीटी यानी उद्धव ठाकरे की पार्टी खुलकर पंकजा के साथ खड़ी हुई थी।
कब तक चुप रहतीं
मुंडे बहनों की नाराजगी के राजनीतिक कारण ज्यादा हैं। 2019 में पंकजा चुनाव हार गईं तो पार्टी ने उन्हें भी दरकिनार करना जारी रखा है। अपने पिता के पारिवारिक गढ़ परली से पंकजा चुनाव हारी थीं। उस समय पंकजा ने आरोप लगाया कि यह भाजपा के लोगों की अंदरूनी "करतूत" थी। उस समय राजनीतिक गलियारों में अटकलें थीं कि पंकजा की हार राज्य भाजपा के आंतरिक शक्ति संघर्ष का परिणाम है क्योंकि उन्होंने खुद को मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार के रूप में पेश किया था। उनकी सार्वजनिक टिप्पणियों ने फडणवीस के साथ उनके संबंधों में खटास ला दी।
दिसंबर 2019 में बीड में एक जनसभा में पंकजा ने कहा था कि “एक चुनाव में हार मुझे परेशान नहीं करती। लेकिन ऐसी स्थिति बनाई जा रही है कि मैं पार्टी छोड़ दूं। मैं पार्टी छोड़ने वाली नहीं हूं। पार्टी चाहे तो मुझे छोड़ सकती है। मुद्दा यह है कि हमने जो घर बनाया है, उससे बाहर क्यों निकलें? अगर छत गिरेगी तो हम सोचेंगे। पंकजा ने पिछले साल कहा था, "मेरे नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा हैं।" पंकजा का यह बयान राज्य नेतृत्व के खिलाफ माना गया।
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