महाराष्ट्र की सियासत में तूफान लाने वाले शिवसेना के कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे के शिवसेना नेतृत्व के साथ रिश्ते बेहतर नहीं चल रहे थे। विधान परिषद चुनाव में मतदान से 2 दिन पहले एकनाथ शिंदे की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे और कैबिनेट मंत्री आदित्य ठाकरे और राज्यसभा सांसद संजय राउत के साथ जोरदार बहस हुई थी। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, यह बहस पवई के एक होटल में हुई थी जहां शिवसेना के विधायकों को एमएलसी चुनाव से पहले सुरक्षित रखा गया था।
यह बहस इस बात को लेकर हुई थी कि कांग्रेस के लिए विधान परिषद के चुनाव में अतिरिक्त वोटों का इंतजाम कैसे किया जाए। एकनाथ शिंदे ने इसका विरोध किया।
विधान परिषद के चुनाव में 10 सीटों पर 11 उम्मीदवार खड़े थे जिसमें आंकड़ों के लिहाज से बीजेपी के चार जबकि शिवसेना और एनसीपी के दो-दो और कांग्रेस के एक उम्मीदवार की जीत तय थी।
लेकिन दसवीं सीट के लिए बीजेपी और कांग्रेस के उम्मीदवार के बीच मुकाबला था। विधान परिषद की दसवीं सीट के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार चंद्रकांत हंडोरे को हार मिली थी। बीजेपी को विधान परिषद के चुनाव में 5 सीटें मिली थीं।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक सूत्र ने कहा कि जब होटल में विधान परिषद के चुनाव को लेकर बातचीत चल रही थी तो शिंदे ने संजय राउत और आदित्य ठाकरे से असहमति जताई। शिंदे इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि शिवसेना के विधायकों के वोट विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत के लिए दिए जाएं। इसके बाद इन नेताओं के बीच जबरदस्त बहस हुई और विधान परिषद चुनाव के नतीजों की शाम को ही एकनाथ शिंदे शिवसेना के कई विधायकों के साथ सूरत के होटल में पहुंच गए।
निश्चित रूप से एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र की महा विकास आघाडी सरकार को घुटनों के बल पर ला चुके हैं। महाराष्ट्र में तेजी से बदल रहे सियासी माहौल के बीच शिंदे के 46 विधायकों का समर्थन होने का दावा करने से यह साफ लगता है कि महा विकास आघाडी सरकार में शामिल दलों के लिए अपनी सरकार को बचा पाना बेहद मुश्किल होगा।
गठबंधन से खुश नहीं थे शिंदे
2019 में जब शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूटा और शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई तो उस समय बात सामने आई थी कि शिंदे इस राजनीतिक गठबंधन को लेकर खुश नहीं हैं।
महाराष्ट्र की सियासत में कहा जाता है कि जिस तरह उद्धव ठाकरे खुद मुख्यमंत्री बने और उन्होंने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को कैबिनेट मंत्री बनाकर संगठन और सरकार में आगे बढ़ाया, वह बाला साहेब ठाकरे की राजनीतिक शैली के विपरीत था क्योंकि बाल ठाकरे ने कभी भी सरकार में कोई पद नहीं लिया। इसे लेकर पुराने शिव सैनिक हैरान थे।
किनारे लगाने की कोशिश
शिंदे के समर्थकों का कहना है कि शिंदे के मंत्रालय में हस्तक्षेप किया जाता था और उन्हें शिवसेना में किनारे लगाने की कोशिश की गई। उनका यह भी कहना है कि पार्टी के बड़े फैसलों में भी एकनाथ शिंदे की राय नहीं ली जाती थी।
एकनाथ शिंदे को शिवसेना का संकटमोचक कहा जाता है और जब तक बाला साहेब ठाकरे जीवित रहे तब तक महाराष्ट्र में तमाम बड़े फैसलों में वह शिंदे की राय लेते थे।
ठाणे इलाके के शिवसैनिक बीते कुछ सालों में कई बार एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का भावी मुख्यमंत्री बताने वाले पोस्टर भी लगा चुके हैं। कहा जाता है कि इसे लेकर ठाकरे परिवार में काफी नाराजगी थी।
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