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तब्लीग़ी जमात कार्यक्रम को क्यों दी इजाज़त, जवाब दें गृह मंत्री: महाराष्ट्र सरकार

कोरोना वायरस को लेकर महाराष्ट्र में अब राजनीति गरमाने लगी है। प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने इस मामले में भारतीय जनता पार्टी और केंद्रीय गृह मंत्री पर सीधा निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात को इतना बड़ा आयोजन करने की इजाज़त किसने दी? कार्यक्रम के आयोजन स्थल मरकज़ के पास में ही पुलिस स्टेशन है फिर भी वह कार्यक्रम रुका क्यों नहीं, क्या इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ज़िम्मेदार नहीं है? 

देशमुख ने कहा कि रात दो बजे मरकज़ में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल क्यों पहुँचे और उन्होंने वहाँ मौलाना से क्या गुप्त चर्चा की? यह कार्य तो दिल्ली के पुलिस आयुक्त का होना चाहिए, ऐसे में डोभाल को वहाँ किसने भेजा? देशमुख ने कहा कि अजित डोभाल और दिल्ली पुलिस के आयुक्त का इस बारे में कोई बयान अब तक नहीं आया है जो अपने आप में सवाल खड़े करता है। उन्होंने कहा कि तब्लीग़ी जमात के आयोजन की अनुमति को लेकर जो सवाल खड़े हो रहे हैं और वहाँ से देश के विभिन्न राज्यों में कोरोना का संक्रमण जिस तरह से फैला है उसका जवाब कौन देगा। 

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देशमुख के इन आरोपों के बाद भाजपा नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस मामले में एक ज्ञापन लेकर राज्यपाल के पास पहुँच गए और विभिन्न माँगों को लेकर राज्य सरकार पर निष्क्रियता के आरोप लगाए। इस पूरे घटनाक्रम में एक और मामला उभर कर आया है राज्यपाल की भूमिका पर। बुधवार को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सभी दलों के नेताओं से वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से चर्चा कर रहे थे तो राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार ने राज्यपालों की भूमिका पर सवाल उठाया था। पवार ने प्रत्यक्ष तौर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल का ज़िक्र तो नहीं किया लेकिन यह बात ज़रूर कही कि कुछ राज्यों में राज्यपाल मुख्यमंत्री के माध्यम से कार्य नहीं कराकर अधिकारियों को प्रत्यक्ष तौर पर निर्देश दे रहे हैं जो संवैधानिक तौर से ग़लत है। 

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पवार के बयान को अनिल देशमुख के आरोपों के बाद फडणवीस व भाजपा के नेताओं के ज्ञापन लेकर राजभवन जाने से भी जोड़ा जा रहा है। क्योंकि ज्ञापन देने के बाद फडणवीस मीडिया के समक्ष आए और उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को मरकज़ में शामिल होकर महाराष्ट्र में आने वाले जमातियों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए न कि इस मुद्दे पर राजनीति। उन्होंने इन जमातियों को मानव बम की उपमा भी दी। लेकिन क्या महाराष्ट्र सरकार या पुलिस वाक़ई मरकज़ में शामिल होने वाले जमातियों के प्रति नरमी का रुख दिखा रही है? 

गृह मंत्री और पुलिस विभाग की तरफ़ से पिछले दिनों दिए जा रहे आँकड़ों को देखें तो 6 अप्रैल तक प्रदेश में पुलिस ने लॉकडाउन के दौरान नियमों का उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ 23166 मामले दर्ज किये हैं। 1410 लोगों की गिरफ्तारी हुई है तथा 7570 वाहनों को जब्त कर उनसे क़रीब 66 लाख रुपये का जुर्माना वसूल किया गया है। यही नहीं, महाराष्ट्र की साइबर पुलिस ने सोशल मीडिया पर झूठ-प्रचार करने वालों के ख़िलाफ़ भी 115 मामले दर्ज किए हैं। पुलिस ने तब्लीग़ी जमात में आए फिलीपींस और म्यांमार के विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ भी अनेक मामले दर्ज किए हैं।

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दिल्ली के मरकज़ में हुए कार्यक्रम में महाराष्ट्र से भी बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे। यह कार्यक्रम पहले मुंबई के उप नगर वसई में ही होने वाला था लेकिन महाराष्ट्र पुलिस ने ऐन वक़्त पर इसकी अनुमति नहीं दी और कार्यक्रम स्थल बदलकर निज़ामुद्दीन कर दिया गया। 7 अप्रैल को देशमुख ने कहा था कि प्रदेश में मरकज़ में शामिल हुए क़रीब 50 लोग अभी तक पकड़ में नहीं आए हैं और इसको लेकर प्रयास जारी हैं। उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस की इस जंग में जैसे ही मरकज़ का नाम सामने आया देश का पूरा गोदी मीडिया इसे साम्प्रदायिक रंग देने में जुट गया और सोशल मीडिया पर भी भ्रामक प्रचार फैलाया जाने लगा। बहुत सी ख़बरों का, यहाँ तक कि न्यूज़ एजेंसी एएनआई की कई ख़बरों का भी पुलिस ने खंडन किया है कि वे वास्तविकता से परे या झूठी हैं। इसके बावजूद फ़ेक न्यूज़ तेज़ी से फैली हैं। ऐसे में महाराष्ट्र के गृह मंत्री द्वारा मरकज़ के आयोजन पर भाजपा और केंद्रीय गृह मंत्रालय से जवाब माँगना एक नयी बहस छेड़ेगा।
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संजय राय
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