महाराष्ट्र में आज़ादी के बाद सिंचाई के लिए सबसे अधिक बांधों का निर्माण किया गया, लेकिन इस साल प्रदेश के  26 ज़िले की 151 तहसीलों के क़रीब 27 हज़ार गाँव भयंकर सूखे की मार झेल रहे हैं। पेयजल की आपूर्ति सप्ताह में एक दिन तक हो गयी है। जानकार बताते हैं कि साल 1972 के सूखे से भी इस साल का सूखा गंभीर है क्योंकि लगातार पिछले तीन सालों से बारिश कम हो रही है और नतीजतन इस साल संकट ज़्यादा बढ़ गया है। इस बार रबी और ख़रीफ़ दोनों फ़सलों पर सूखे की मार पड़ी है। ज़मीन में नमी नहीं है और जलाशयों में पानी नहीं है। सामान्य से 30 फ़ीसदी कम हुई बारिश ने भी स्थिति को और बिगाड़ा है। महाराष्ट्र में भू-जल स्तर भी तेज़ी से नीचे गिरता जा रहा है। प्रदेश में सिंचाई वाले कुल क्षेत्र का 65 फ़ीसदी हिस्सा आज भी भू-जल स्तर पर निर्भर है। हालाँकि अप्रैल 2016 में राज्य द्वारा 200 फीट से नीचे बोरवेल की खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी।