एक झटके में महाराष्ट्र में सत्ता-समीकरण बदलने से क्षुब्ध और आहत कांग्रेस पार्टी अदालत का दरवाजा खटखटाने के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर रही है। पार्टी में इस पर मंथन चल रहा है कि अब क्या किया जा सकता है। क़ानूनी पक्ष देखने और अदालत जाने के मुद्दे पर पूरी तैयारी करने का काम मशहूर वकील अभिषेक मनु सिंघवी को सौंपा गया है।
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कांग्रेस पार्टी इस तरह सकते में है कि उसने दिन में होने वाले प्रेस कॉन्फ्रेंस को रद्द कर दिया है। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला पार्टी का स्टैंड रखने वाले थे।
पार्टी में इस मुद्दे पर थोड़ी सी ऊहापोह की स्थिति है। यह अभी साफ़ नहीं है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कितने विधायक टूट कर अजित पवार के खेमे में चले गए हैं। यदि एनसीपी अंदर ही अंदर टूट चुकी है और पार्टी के आधा या इससे अधिक विधायक अजित पवार के साथ चले गए हैं, तो कांग्रेस के पास सीमित विकल्प है। एनसीपी टूट जाए और विधायक अजित पवार के साथ जाकर नयी सरकार को विधानसभा में समर्थन कर दें तो क़ानूनी तौर पर कुछ ज्यादा नहीं किया जा सकता है, भले ही नैतिकता की कितनी भी दुहाई दी जाए।
जानकारों का तर्क है कि राज्यपाल ने एनसीपी से टूटने वाले विधायकों की तादाद जाने बिना इतना बड़ा फ़ैसला नहीं लिया होगा। यदि एनसीपी टूट गई तो, कांग्रेस पार्टी बस हाथ मलती रह जाएगी।
कांग्रेस के एक बड़े नेता ने अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘हमें नहीं पता कि एनसीपी के सभी विधायक अजित पवार के साथ चले गए हैं, हमें यह भी नहीं मालूम कि कितने विधायकों ने राज्यपाल को सौंपे पत्र पर दस्तख़त किए हैं। हमें तो यह भी नहीं पता है कि क्या वाकई समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंपा गया है।’
पर्यवेक्षकों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी के पास फ़िलहाल इंतजार करने का ही विकल्प है। यदि वह इस पर आश्वस्त होती है कि आधे से ज़्यादा विधायकों ने एनसीपी के बाग़ी अजित पवार को समर्थन नहीं किया है तो वह अदालत जाने के बारे में सोच सकती है।
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