सत्ता समीकरण के खेल में अपने ही साथी के हाथों हारी बीजेपी के नेता भले ही बार-बार यह बात दोहरा रहे हैं कि कुछ ही दिनों में प्रदेश की सत्ता फिर से उनके पास आ जाएगी लेकिन इसके उलट उनकी पार्टी में कुछ और भी हो रहा है। पार्टी के कुछ नेता बग़ावत के मूड में हैं और वे जल्दी ही पाला बदलने वाले हैं। इसमें सबसे पहला नाम विपक्ष के पूर्व नेता एकनाथ खडसे का है। खडसे मंगलवार रात को नागपुर पहुंचे, जहां विधानसभा का अधिवेशन चल रहा है। खडसे की एनसीपी प्रमुख शरद पवार और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाक़ात होगी।
इस बात की ख़बरें गर्म हैं कि खडसे इस माह के अंतिम सप्ताह में होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार से पहले ही एनसीपी में शामिल हो जाएंगे। खडसे इससे पहले भी इन दोनों नेताओं से मिल चुके हैं। पवार से उन्होंने दिल्ली जाकर मुलाक़ात की थी और इसके बाद बीजेपी नेता गोपीनाथ मुंडे की जयंती पर जब पंकजा मुंडे ने कार्यक्रम आयोजित किया था तो उन्होंने प्रदेश बीजेपी के नेताओं पर जमकर हमले किए थे।
खडसे ने कार्यक्रम में बार बार इस बात को कहा था कि महाराष्ट्र में सेठजी-भटजी (बनियों और ब्राह्मणों) की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी को मुंडे और उन्होंने पिछड़े वर्ग के लोगों से जोड़कर उसका आधार बढ़ाया लेकिन उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया। खडसे ने कहा था कि उन्हें पार्टी की कोर कमेटी से भी बाहर कर दिया गया और बैठकों में भी नहीं बुलाया जाता।
कार्यक्रम में पंकजा मुंडे और खडसे ने इस बात को स्पष्ट रूप से कहा था कि उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि वे पार्टी छोड़ दें। मंच पर मौजदू बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कहा था कि घर का झगड़ा आपस में चर्चा करके निपटाना चाहिए, इसे मंच पर लाने की ज़रूरत नहीं है लेकिन वह बयान सिर्फ़ राजनीतिक स्टंट ही साबित हुआ।
बीजेपी की तरफ़ से इन नेताओं से वार्ता के बजाय उनके पर कतरने की क़वायदें बढ़ गयीं। खडसे के बयानों के बाद तो उनके बीजेपी में बने रहने के सभी विकल्प भी बंद होने की ख़बरें हैं। ऐसे में खडसे का पवार से मिलना यह बताता है कि अब बीजेपी से नेताओं के निकलने का खेल शुरू होने वाला है।
विधानसभा चुनावों से पूर्व बीजेपी ने बड़े पैमाने पर एनसीपी-कांग्रेस के नेताओं, विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कराया था। लेकिन बीजेपी सत्ता में नहीं लौट सकी। वैसे, महा विकास अघाडी की सरकार बनने के बाद से ही उलटा खेल शुरू होने की संभावनाएं लगने लगी थीं।
एक सवाल यह भी है कि खडसे अपने साथ और कितने नेताओं को लेकर एनसीपी में शामिल होने वाले हैं? जिस तरह से दिल्ली में संसद का सत्र ख़त्म होते ही शरद पवार नागपुर पहुंच गए हैं और अपने विधायकों के साथ बैठकें कर रहे हैं, उससे एक बात तो साफ़ है कि वह महाराष्ट्र में नई सरकार को लेकर कितने गंभीर हैं।
पवार का बार-बार अपने विधायकों से मिलना इस बात का भी संकेत है कि वह अजीत पवार के भरोसे सब कुछ छोड़ना नहीं चाहते। दूसरा, उनकी रणनीति अपने पुराने विधायकों को वापस पार्टी में लाने की भी है ताकि सदन में बीजेपी का संख्या बल घटाया जा सके। पवार बिलकुल नहीं चाहेंगे कि महाराष्ट्र में कर्नाटक की पुनरावृति हो।
वैसे भी, कुछ विधायक जो चुनावों के ठीक पहले एनसीपी और कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे उनकी स्थिति त्रिशंकु जैसी बनी हुई है। ये विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में स्थानीय निकाय चुनावों की गणित में उलझे हुए दिखाई दे रहे हैं। ये विधायक सत्ता में हिस्सेदारी की आस में बीजेपी में आये थे लेकिन अब उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि वे स्थानीय निकाय चुनावों में महा विकास आघाडी (शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस) का मुक़ाबला कैसे करेंगे।
जैसा कि महा विकास आघाडी में शामिल इन तीनों पार्टियों के नेता यह कह रहे हैं कि स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी को साफ़ करने के लिए वे गठबंधन कर साथ आयेंगे, इस बात ने भी दल-बदलू विधायकों की परेशानी बढ़ा दी है। अब ये विधायक घर वापसी की बात कहकर कब बीजेपी का साथ छोड़ेंगे, इसी पर सभी की नज़रें लगी हैं।
2020 के शुरू होते ही प्रदेश के कई जिलों में स्थानीय निकाय चुनाव शुरू हो जायेंगे। पहला जिला परिषद का चुनाव पंकजा मुंडे के गृह क्षेत्र बीड और फडणवीस के गृह क्षेत्र नागपुर में होने वाला है। ये चुनाव संकेत दे देंगे कि प्रदेश में दल-बदल का खेल कितनी तेजी से चलने वाला है। वैसे खडसे से इसकी शुरुआत होने वाली है और यह करीब-करीब तय हो चुका है।
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