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महाराष्ट्रः लोगों की नाराजगी के आगे क्या चल पाएगा महायुति का हिन्दू-मुस्लिम एजेंडा

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपने हिन्दू-मुस्लिम एजेंडे पर जोर देना पड़ रहा है। "बटेंगे तो कटेंगे", या "एक हैं तो सेफ हैं", नारे अपनी जगह है। लेकिन भाजपा अपनी सहयोगी एनसीपी अजित पवार की आपत्ति के बावजूद अब खुले आम कह रही है धर्मांतरण विरोधी कानून लाएगी। किसानों से कह रही है कि एमवीए की सरकार आने पर उनकी जमीन पर वक्फ बोर्ड कब्जा कर सकता है। पिछले हफ्ते उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस का एक वीडियो सामने आया, जो आमतौर पर ऐसी भाषा के लिए नहीं जाने जाते, उसमें वो औरंगजेब के अपमानजनक संदर्भ और पाकिस्तान पर कब्जा करने के वादे के साथ एआईएमआईएम पर निशाना साध रहे थे।

भाजपा का हिंदुत्व का यह नैरेटिव महाराष्ट्र में लंबे समय के बाद आया है। कई महीने पहले सकल हिंदू समाज नामक संगठन ने, वरिष्ठ भाजपा नेताओं के समर्थन से, राज्य भर में "लव जिहाद विरोधी" रैलियां की थीं। चुनावों के करीब, फडणवीस सहित राज्य के बड़े भाजपा नेताओं ने अल्पसंख्यक मतदान पैटर्न पर एक अप्रत्यक्ष हमले में, चुनावी कहानी में "वोट जिहाद" जोड़ा। फिर ये लोग चुप हो गए और अब चुनाव के आखिरी दौर में फिर से हिन्दू-मुस्लिम एजेंडे पर लौट आए।

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मुंबई की वर्सोवा सीट पर, फडणवीस ने कहा, “लव जिहाद, भूमि जिहाद का मुकाबला धर्म युद्ध से किया जाना चाहिए।”  महा विकास अघाड़ी के पीछे मराठा-मुस्लिम एकजुटता से भाजपा काफी सावधान है। राज्य के आधे से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों वाले ग्रामीण क्षेत्रों में इस एकजुटता के असर से वो आशंकित है। उसे अब हिंदू वोटों को मजबूत करने के लिए हिंदुत्व के मुद्दों पर लौटने के अलावा कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है।

भाजपा के सूत्रों का कहना है कि पार्टी को जाति और किसानों के मुद्दों से निपटने के प्रयासों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए स्वीकार किया: “हमें विश्वास था कि कृषि क्षेत्र में कल्याणकारी योजनाओं की वजह से किसानों का गुस्सा कम हो जाएगा। लेकिन हमे कभी भी इतने बड़े पैमाने पर गुस्से की उम्मीद नहीं की थी।”

भाजपा ने यह भी अंदाजा लगाया था कि आरक्षण को लेकर मराठों का गुस्सा खत्म हो जाएगा। मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल की रणनीति ने भाजपा की राजनीति को नाकाम कर दिया। जारांगे-पाटिल का किसी को भी समर्थन न देने का निर्णय एमवीए को और अधिक फायदा पहुंचा सकता है, जिससे यह हो सकता है कि कि मराठा वोट बंटने न पाए और गठबंधन के पीछे एकजुट रहे।

हालांकि सुविधाभोगी और सरकारी नौकरीपेशा लोगों के लिए, हिंदुत्व की अपील अन्य चिंताओं पर हावी है। नागपुर जिले के चिचोली गांव के रमेश शेलके ने कृषि क्षेत्र में महायुति के गलत प्रबंधन के खिलाफ आधा दर्जन शिकायतें गिनाईं। लेकिन, उन्होंने यह भी कहा कि "हिंदुत्व के एजेंडे को बरकरार रखने का श्रेय उन्हें देना ही पड़ेगा।"

नागपुर शहर में, राज्य सरकार के एक कर्मचारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि "राम मंदिर से लेकर अनुच्छेद 370 को निरस्त करने तक, यह केवल भाजपा के कारण ही संभव हो सका।" अधिकारी का कहना है कि ऐसे राज्य में जहां हिंदू बहुसंख्यक हैं, "हमें उनके (मुस्लिम) दबाव के आगे क्यों झुकना चाहिए"।

महाराष्ट्र में कम से कम 15 विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बड़ी है, जो कुल का 30% से 78% तक है। अनुमान है कि राज्य की आबादी में मुसलमान लगभग 12% हैं।


हिंदू-बहुल क्षेत्रों के अलावा, हिंदू वोटों के एकजुट होने से भाजपा को उन क्षेत्रों में भी विपक्षी एमवीए से आगे निकलने में मदद मिल सकती है, जहां मुस्लिम अधिक संख्या में हैं। भाजपा हिंदुत्व पर जोर ऐसे ही निर्वाचन क्षेत्रों में विशेष रूप से लगा रही है। पिछले हफ्ते उत्तरी महाराष्ट्र के धुले में पीएम मोदी ने आदित्यनाथ के "कटेंगे तो बताएंगे" को "एक हैं तो सुरक्षित हैं" नारे में बदल दिया। धुले शहर निर्वाचन क्षेत्र 2019 में एआईएमआईएम ने जीता था, और इस सीट पर भाजपा के एक पूर्व पार्टी नेता एक शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी हैं।

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भाजपा के एजेंडे की आलोचना करते हुए, वरिष्ठ कांग्रेस नेता बालासाहेब थोराट ने भाजपा द्वारा वक्फ भूमि विवाद को उठाने का उदाहरण देते कहा- “औसतन 12 भूमि भूखंडों में से सात आधिकारिक तौर पर राजस्व रिकॉर्ड में रजिस्टर्ड हैं। कोई व्यक्तिगत अधिकार कैसे छीन सकता है? ये किसानों को गुमराह करने के लिए भाजपा द्वारा इस्तेमाल किए गए फर्जी नैरेटिव हैं। उन्होंने हमेशा वोट के लिए जाति, धर्म का इस्तेमाल किया है। यह काम नहीं करेगा।''

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क़मर वहीद नक़वी
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