मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों की बगावत के बाद बैकफुट पर आए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे इन दिनों शिवसेना को फिर से खड़ा करने के काम में जुटे हैं। ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के मजबूत आधार वाले इलाके ठाणे जिले में आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को शिवसेना की कमान सौंप दी है।
मंगलवार को ही मुंबई पुलिस ने केदार दिघे के खिलाफ 23 साल की एक महिला को धमकाने के मामले में मुकदमा दर्ज किया था। बताना होगा कि शिवसेना में हुई बगावत के बाद से ही बड़ी संख्या में विधायक, सांसद, पार्षद और शिवसैनिक उद्धव ठाकरे का साथ छोड़कर एकनाथ शिंदे के साथ आ चुके हैं।
लेकिन दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे भी शिव सैनिकों के बीच पहुंचकर नया पार्टी कैडर खड़ा कर रहे हैं।
लेकिन यहां पर यह जानना जरूरी होगा कि आखिर आनंद दिघे कौन हैं। शिवसेना में एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों की बगावत के बाद अचानक आनंद दिघे का नाम राष्ट्रीय राजनीति में सुर्खियों में आया था।
आनंद दिघे ठाणे-कल्याण के इलाके के ताकतवर शिवसैनिक थे। शिवसैनिक आज भी उन्हें पूरी श्रद्धा के साथ याद करते हैं।
ठाणे में दिघे का वर्चस्व
आनंद दिघे इस इलाके में समानांतर अदालत चलाते थे और जो वह कहते थे, उनकी बात सभी मानते थे।
ठाणे में दिघे का इतना वर्चस्व था कि बाला साहेब ठाकरे भी उन पर लगाम नहीं लगा सके। इसे ध्यान में रखते हुए ही शिवसेना ने 2001 में आनंद दिघे की मौत के बाद एकनाथ शिंदे को ठाणे-कल्याण के इलाके में कभी भी फ्री हैंड नहीं दिया।
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शिंदे को बढ़ाया आगे
आनंद दिघे ने ही एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र की सियासत में आगे बढ़ाया। दिघे ने शिंदे को 1997 में ठाणे नगर निगम में पार्षद बनवाया और फिर नगर निगम में सदन का नेता भी बनाया। 2001 में आनंद दिघे की मौत के बाद शिंदे ने ठाणे-कल्याण में उनकी जगह पर शिवसेना को मजबूत करने का काम शुरू किया।
ठाकरे परिवार को शिंदे से चुनौती
शिवसेना की सियासत को जानने वाले लोग यह भी कहते हैं कि ठाकरे परिवार आनंद दिघे की मौत के बाद एकनाथ शिंदे के पार्टी में दबदबे को लेकर घबराहट महसूस करता था। शिंदे के समर्थकों का कहना है कि ठाकरे सरकार में शिंदे के मंत्रालय में हस्तक्षेप किया जाता था और उन्हें शिवसेना में किनारे लगाने की कोशिश की गई।
जब तक बाला साहेब ठाकरे जीवित रहे तब तक महाराष्ट्र में तमाम बड़े फैसलों में वह एकनाथ शिंदे की राय लेते थे।
मराठी फिल्म धर्मवीर
मई के महीने में आनंद दिघे पर धर्मवीर नाम की एक मराठी फिल्म बनी थी। आनंद दिघे की मौत के बाद कई तरह की चर्चाएं हुई थीं और इन पर विराम नहीं लग सका है। उनकी मौत के पीछे असली वजह क्या है यह आज तक सामने नहीं आई है।
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शिंदे ने लगाया किनारे
केदार दिघे साल 2006 से राजनीति में हैं और शिवसेना की युवा शाखा में भी कई पदों पर रह चुके हैं। शिवसेना के सूत्रों का कहना है कि उन्होंने दो बार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी मांगा लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। कहा जाता है कि इसकी वजह यह है कि एकनाथ शिंदे ने केदार दिघे को ठाणे जिला इकाई में किनारे लगा दिया था।
शिवसेना के नेता ने बताया कि केदार दिघे को शिवसेना में जिला प्रमुख की जिम्मेदारी उद्धव ठाकरे ने काफी सोच-समझ कर दी है और इसके पीछे मंशा यही है कि केदार दिघे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बजाय खुद को आनंद दिघे का राजनीतिक उत्तराधिकारी साबित कर सकें।
एक शिवसैनिक ने अखबार को बताया कि हालांकि कुछ विधायक और पार्षद शिवसेना को छोड़कर चले गए हैं लेकिन अभी भी शिवसेना का कैडर ठाकरे परिवार और केदार दिघे के साथ खड़ा है।
निश्चित रूप से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की मुश्किलें पिछले एक महीने में बहुत ज्यादा बढ़ी हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की लड़ाई पर क्या फैसला देता है, वह आने वाले दिनों में शिवसेना की सियासत को तय करेगा।
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