पड़ोसी मुल्क़ पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची के नाम से हिंदुस्तान में जहां-जहां कोई बेकरी या दुकान है, उस पर हिंदूवादी संगठनों या हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाले दलों से जुड़े लोग आपत्ति जताते हैं। यूं तो रावलपिंडी, सिंधी नाम से भी भारत में कई शहरों में दुकानें हैं और दिल्ली में लाहौर अपार्टमेंट भी है लेकिन कराची शब्द को लेकर ज़्यादा विवाद देखा गया है।
इसी तरह लाहौर में दिल्ली गेट है, बॉम्बे चौपाटी है और दिल्ली निहारी नाम से मिक़्स मसाला भी मिलता है। लाहौर में अमृतसरी दही भल्ले भी मिलते हैं।
दरअसल, विभाजन के बाद दोनों मुल्क़ों में जिन लोगों को इधर से उधर होना पड़ा, उन्होंने अपनी यादों को संजोते हुए अपने कारोबार का नाम अपने पुराने शहरों के नाम पर रखा। पाकिस्तान के फ़ौज़ी शासक व राष्ट्रपति रहे परवेज़ मुशर्रफ़ का जन्म दिल्ली का है तो भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी कराची में पैदा हुए हैं।
कराची को लेकर ताज़ा विवाद मुंबई के बांद्रा वेस्ट में एक मिठाई की दुकान के नाम को लेकर सामने आया है। इस दुकान का नाम कराची स्वीट्स है। शिवसेना के नेता नितिन नंदगांवकर इस दुकान पर पहुंचे थे और उन्होंने दुकान के मालिक से कहा था कि वे कराची शब्द को बदल दें और इसकी जगह मराठी भाषा में कोई नाम रखें।
नंदगांवकर ने धमकी देते हुए कहा था कि उन्हें यह करना ही होगा और इसके लिए वह उन्हें 15 दिन का वक़्त दे रहे हैं।
नदंगांवकर ने कहा, ‘मुंबई और महाराष्ट्र में कराची नाम का और इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा। अगर आप मुंबई में रहते हैं तो मुंबई पर गर्व करो। ये सब मुंबई में नहीं चलेगा। पाकिस्तान मुर्दाबाद है और हमेशा रहेगा।’ इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसके बाद दुकान के मालिक ने कराची नाम के आगे अख़बार लगाकर उसे ढक दिया है।
राउत बोले- बेतुकी बात
सोशल मीडिया पर जब इसे लेकर विवाद बढ़ा तो शिव सेना को प्रतिक्रिया देने के लिए आगे आना पड़ा। शिव सेना सांसद संजय राउत ने कहा कि इस दुकान का नाम बदलने की मांग शिव सेना की नहीं है। उन्होंने कहा कि कराची बेकरी और कराची स्वीट्स मुंबई में पिछले 60 सालों से है और इनका पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है। राउत ने कहा कि इनके नाम बदलने की बात कहना पूरी तरह बेतुका है।
नदंगांवकर ने इंडिया टुडे से कहा, ‘मुझे जो सही लगा, मैंने किया। मैं इस पर राजनीति नहीं करना चाहता। सबकी अपनी भावनाएं हैं। अगर कोई नाम नहीं बदलता है तो मैं उससे नाम बदलवाऊंगा।’ नंदगांवकर पहले महाराष्ट्र नव निर्माण सेना में थे और हाल ही में उन्होंने शिव सेना ज्वाइन की है।
फ़रवरी, 2019 में पुलवामा में भारत के जवानों के शहीद होने के बाद बेंगलुरू की कराची बेकरी को लेकर भी ऐसा ही विवाद हुआ था। लोगों ने कराची बेकरी को बंद करने की मांग की थी। यह बेकरी सिंध से 1952 में भारत आए खानचंद रामनामी की है।
ख़ैर, शिव सेना ने जिस तरह इस विवाद से अपना पल्ला झाड़ा है, उससे साफ है कि वह इस तरह की बातों को तूल नहीं देना चाहती। यह बात सही है कि पाकिस्तान की नापाक हरक़तों और पुलवामा हमले में उसके मंत्री के कबूलनामे के बाद हिंदुस्तान में इस पड़ोसी मुल्क़ के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बढ़ा है।
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पाकिस्तान के विज्ञान और प्रोद्यौगिकी मंत्री फ़वाद चौधरी ने कुछ दिन पहले नेशनल एसेंबली में कहा था, ‘पुलवामा में जो हमारी क़ामयाबी है, वो इमरान ख़ान की क़यादत में इस कौम की क़ामयाबी है, उसके हिस्सेदार आप भी सब हैं, उसके हिस्सेदार हम भी सब हैं।’
फ़वाद के इस बयान के बाद आतंक का आका पाकिस्तान पूरी तरह बेनक़ाब हो चुका है।
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