चुनाव आयोग ने अब मान लिया है कि एनसीपी में अजीत पवार का गुट ही असली एनसीपी है। आयोग के इस फैसले को अजीत पवार गुट की बड़ी जीत माना जा रहा है।
आयोग ने इसको लेकर अपने फैसले में कहा है कि अजीत पवार गुट ही असली एनसीपी है। इसके साथ ही उसने कहा है कि शरद पवार गुट को नया नाम और चुनाव चिह्न अब 7 फरवरी को अलॉट किया जायेगा।
करीब 6 माह तक चली 10 सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने कहा है कि विधायकों की संख्या के बहुमत ने एनसीपी अजीत गुट को पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह्न हासिल करने में मदद की है।
एनसीपी शरद पवार गुट के लिए यह बड़ा झटका है। आयोग के इस फैसले के बाद अब शरद पवार का गुट असली एनसीपी नहीं माना जाएगा। शरद पवार एनसीपी के संस्थापक रहे हैं।
आयोग के इस फैसले के बाद शरद पवार के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। अब जबकि लोकसभा चुनाव को कुछ महीने ही शेष हैं तब एक नए नाम और निशान वाली पार्टी को मतदाताओं के बीच ले जाना और जनता के वोट हासिल करना आसान नहीं होगा।
बीते वर्ष, 2 जुलाई 2023 को एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे और पार्टी के वरिष्ठ नेता अजीत पवार ने बगावत कर दी थी। तब वह विपक्ष से उठकर सत्ता पक्ष में शामिल हो गए थे। अपने 8 साथी विधायकों के साथ महाराष्ट्र की शिंदे सरकार में वह शामिल हुए थे। खुद अजीत पवार उपमुख्यमंत्री बने थे।
अजित पवार एनसीपी के 40 विधायकों के साथ एनडीए गठबंधन में चले गए थे। एनडीए गठबंधन सरकार में उनके जाने से इंडिया गठबंधन को भी झटका लगा था।
एनसीपी नेता शरद पवार से बगावत करने के बाद अजीत पवार ने दावा किया था कि एनसीपी का बहुमत उनके पास है। तभी उन्होंने पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न पर दावा किया था।
अजीत पवार ने बीते वर्ष 5 जुलाई को घोषणा की थी कि अब एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष वह खुद हैं। उनके गुट ने कहा था कि शरद पवार को एनसीपी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है।
वहीं शरद पवार गुट का दावा था कि पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न उनका ही है। उन्होंने अजीत पवार सहित एनसीपी से बगावत करने वाले सभी 40 विधायकों को अयोग्य घोषित करने मांग की थी
बगावत के समय अजीत पवार गुट द्वारा मीडिया को जानकारी दी गई थी कि प्रफुल्ल पटेल ने 30 जून को मुंबई में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई थी और उसमें यह फैसला लिया गया था
माना जाता है कि दावं पेंच में अजीत पवार गुट शरद पवार गुट पर इस बगावत के बाद से ही लगातार भारी पड़ता रहा है।
इस बात को इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि बगावत सार्वजनिक होने से पहले ही 30 जून को अजीत पवार गुट ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह्न पर दावा जता दिया था।
बाद में जब एनसीपी में बगावत हो गई तब 3 जुलाई को आयोग को पत्र लिखकर शरद पवार गुट ने अजीत पवार समेत कुल 40 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी।
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