बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार सोमवार को संभाल लिया। दिलचस्प बात यह है कि एनसीपी विधायक अजीत पवार ने उनके साथ ही उप मुख्यमंत्री पद का कार्यभार नहीं संभाला है।
फडणवीस पिछली सरकार में भी मुख्यमंत्री थे। अजीत पवार एनसीपी के विधायक दल के नेता चुने गए थे। लेकिन, उनके रातोंरात पाला बदलने और बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बनाने का दावा पेश करने के बाद पार्टी के विधायकों ने विशेष बैठक बुला कर उन्हें पद से हटा दिया। पर एनसीपी खेमे के कहना है कि पवार को विधायक दल के नेता पद से हटाने की कोई क़ानूनी वैधता नहीं है।
महाराष्ट्र बीजेपी के नेता आशीष सेलार पहले ही कह चुके हैं कि अजीत पवार को विधायक दल के नेता पद से हटाना ‘ग़ैरक़ानूनी’ है, इसकी ‘कोई क़ानूनी वैधता नहीं है।’
नंबर का खेल
फडणवीस का दावा है कि उनके पास 170 विधायकों का समर्थन है। उनका दावा है कि बीजेपी के 105 और एनसीपी के 54 विधायकों के अलावा 11 निर्दलीय विधायक भी उनके साथ हैं।सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि फडणवीस को 170 विधायकों का समर्थन हासिल है और वह बहुमत साबित करने के लिए पर्याप्त है।
एनसीपी के बाग़ी नेता अजीत पवार का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने भी सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उनके पास 54 विधायकों के समर्थन की चिट्ठी है। अधिवक्ता ने कहा कि एनसीपी के सभी विधायक अजीत पवार के साथ हैं।
इसके पहले शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने सरकार बनाने के फ़ैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि महामहिम राज्यपाल ने भेदभावपूर्ण तरीके से काम किया है और राज्यपाल के पद का मजाक बना दिया है। याचिका में माँग की गई थी कि देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के राज्यपाल के फैसले को रद्द किया जाए और विधायकों की खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए तुरंत शक्ति परीक्षण कराया जाए। सोमवार को इस पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट इस पर फ़ैसला मंगलवार 10.30 बजे सुनाएगा।
अपनी राय बतायें