मुंबई और महाराष्ट्र की गलियों में इस बार ‘गोविंदा आला रे....’ के गीत नहीं गूँजेंगे। कोरोना संकट के चलते दही हांडी समन्वय समिति ने यह निर्णय लिया है कि इस बार यह उत्सव नहीं मनाया जाएगा। मुंबई के इतिहास में यह पहला साल होगा जब दही हांडी का उत्सव नहीं मन रहा होगा।
दरअसल, महाराष्ट्र में ‘फेस्टिवल सीजन’ की शुरुआत ही दही हांडी के साथ होती है। इसके बाद गणेशोत्सव, नवरात्र में खेला जाने वाला ‘डांडिया’ और फिर दीपावली का उत्सव मनाया जाता है। लेकिन कोरोना की वजह से सभी त्योहारों का रंग फीका ही रहने की आशंका बढ़ती जा रही है। दो दिन पहले ही गणेशोत्सव मंडलों ने भी ऐसा ही निर्णय लिया था कि इस बार वे सांकेतिक रूप से उत्सव मनायेंगे और वर्चुअल दर्शन की व्यवस्था करेंगे ताकि लोगों के जमावड़े को रोका जा सके। इसके चलते मुंबई के राजा नामक गणपति मंडल ने यह घोषणा भी कर दी कि इस बार मूर्ति की ऊँचाई 22 फुट की न होकर केवल ढाई फुट की ही रहेगी।
दही हांडी और गणेशोत्सव महाराष्ट्र में दो प्रमुख त्योहार हैं। गणेशोत्सव 12 दिन तक चलता है। अकेले मुंबई में उस दौरान लाखों घरों और हज़ारों सार्वजनिक मंडलों में गणेश प्रतिमाओं की स्थापना करके उनकी पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन एक बात जो मुंबई या महाराष्ट्र में देखने को मिल रही है वह यह कि इन आयोजनों की अनुमति माँगने के लिए अभी तक किसी ने कोर्ट का सहारा नहीं लिया है। सभी मंडलों ने सर्वसम्मति से फ़ैसला स्वीकार किया है।
हालाँकि ओडिशा के पुरी और गुजरात के अहमदाबाद में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली गयी है। रथयात्रा को निकालने की अनुमति के लिए कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े तक खटखटाये थे। लेकिन जिस बात की तारीफ़ करनी पड़ेगी वह यह कि महाराष्ट्र में इन धार्मिक आयोजनों को रद्द करने या सांकेतिक स्वरूप में करने की पहल इनके आयोजकों द्वारा ही की जा रही है।
दो दिन पहले गणेशोत्सव मंडलों ने गणेश उत्सव को सांकेतिक रूप से मनाने का निर्णय लिया था और अब दही हांडी उत्सव समन्वय समिति ने निर्णय लिया है कि इस साल यह त्योहार नहीं मनाया जाएगा।
मात्र इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि विधान से की जाएगी। मुंबई और महाराष्ट्र में कोरोना की महामारी को देखते हुए सभी ने एकमत से इस बात को स्वीकार किया ‘सर सलामत तो पगड़ी पचास’, ‘बचेंगे तो और भी लड़ेंगे/खेलेंगे'।
उल्लेखनीय है कि मुंबई और महाराष्ट्र के सभी शहरों में दही हांडी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता रहा है। हज़ारों की संख्या गोविंदा पथक जिनमें सैकड़ों युवा, बच्चे तथा बड़े लोग शामिल होते हैं, ट्रकों, बसों, मोटर साइकिल आदि पर सवार होकर गली-गली निकलते थे और देर रात तक मटकी फोड़ने का सिलसिला जारी रहता था।
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