महाराष्ट्र में सरकार बनाने की तस्वीर अब साफ़ हो गयी है। शुक्रवार को इसकी अधिकृत घोषणा मुंबई में की जाने की संभावना है। पहली बार कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस की तरफ से अधिकृत रूप से बयान आया है कि प्रदेश को शीघ्र ही स्थायी सरकार दी जाएगी। कांग्रेस की तरफ से पृथ्वीराज चव्हाण तथा एनसीपी की तरफ से पार्टी के प्रवक्ता नवाब मलिक ने बुधवार शाम को उस वक़्त बयान दिया जब दोनों कांग्रेस के नेताओं की शरद पवार और अहमद पटेल की उपस्थिति में दिल्ली में बैठक चल रही थी।
राष्ट्रवादी कांग्रेस के सूत्रों से यह ख़बर भी मिली है कि मुख्य मंत्री पद का कार्यकाल ढाई-ढाई साल का हो सकता है। पहले मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे शपथ लेंगे और बाद में एनसीपी का कोई नेता उस पद पर ढाई साल बाद बैठ सकता है। दोनों कांग्रेस के नेताओं द्वारा सरकार बनाने पर सहमति वाले बयान के बाद शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा कि 5-7 दिन में प्रदेश को स्थिर सरकार मिल जाएगी।
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उन्होंने कहा कि प्रदेश में अभी राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है, इसलिए सबसे पहले तीनों दलों के नेता एक साथ राज्यपाल के समक्ष उपस्थित होकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे। इस दावे के बाद राज्यपाल, राष्ट्रपति शासन हटाने की घोषणा करेंगे और नयी सरकार के गठन का रास्ता साफ़ होगा।
बैठकों का दौर!
कांग्रेस-एनसीपी की बैठक के बाद संजय राउत ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से उनके आवास पर जाकर मुलाक़ात की है। बताया जाता है कि इस दौरान राउत ने पवार की उद्धव ठाकरे से फोन पर बात भी करायी। संसद का सत्र जारी रहने की वजह से कांग्रेस-एनसीपी के साथ-साथ शिवसेना नेताओं ने भी दिल्ली में डेरा डाला हुआ है और बैठकों का दौर पिछले तीन दिनों से जारी है।लेकिन बुधवार शाम को सूत्रों से जो खबर मिली है उसके अनुसार कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी के नेताओं को शुभ संकेत दिए हैं। सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं को स्थिर साझा सरकार बनाने के लिए हरी झंडी दिखा दी है। यह निर्णय बुधवार को दोपहर महाराष्ट्र के नेता पृथ्वीराज चव्हाण,अशोक चव्हाण, प्रदेश अध्यक्ष बालासाहब थोरात, पूर्व मंत्री नसीम ख़ान ने कांग्रेस के महाराष्ट्र प्रभारी मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस महासचिव वेणुगोपाल की उपस्थिति में सोनिया गांधी के साथ हुई बैठक में किया गया । यह भी खबर मिली है कि सोनिया गांधी ने शरद पवार से कहा है कि महाराष्ट्र में कर्नाटक की पुनरावृत्ति ना हो।
बताया जा रहा है कि सरकार के लिए हरी झंडी मिलने के लिए एक बड़ा कारण कर्नाटक का सबक भी रहा है। इसलिए सोनिया गांधी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने हर एक मुद्दे पर विस्तृत चर्चा कर सहमति बनायी है।
क्यों राजी हुईं सोनिया?
सोनिया गांधी द्वारा सहमति मिलने के तुरंत बाद कांग्रेस के ये सभी नेता अहमद पटेल के नेतृत्व में एनसीपी प्रमुख शरद पवार के घर पहुंचे। उस बैठक में शरद पवार के अलावा प्रफुल पटेल, अजित पवार, सुनील तटकरे, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल, पूर्व मंत्री छगन भुजबल, सुप्रिया सुले, नवाब मलिक आदि उपस्थित रहे। बताया जा रहा है कि गठबंधन के दोनों दल अपनी पूरी रणनीति तय करने के बाद शिवसेना नेताओं से मिलेंगे।'सत्य हिंदी' पिछले तीन सप्ताह से अपने विश्लेषणों में इस बात का संकेत दे रहा था कि प्रदेश में संभावित सरकार शिवसेना के नेतृत्व में ही बनेगी और कांग्रेस तथा एनसीपी उसे समर्थन करेगी। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद भी हमारी रिपोर्ट में यह संकेत दिए जा रहे थे कि सरकार बनाने की गंभीर पहल शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की तरफ से की जा रही है।
उद्धव ने विधायकों को बुलाया
अब सबकी नजरें राजभवन की तरफ लगने वाली हैं कि वहाँ से इस साझा सरकार के दावे को क्या सहयोग मिलता है? उधर, मंगलवार रात को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पार्टी के सभी नवनिर्वाचित विधायकों को आदेश दिए हैं कि वे 5 दिन के लिए मुंबई आ जाएँ। शुक्रवार को उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी के विधायकों की बैठक लेने वाले हैं। उन्होंने सभी विधायकों से कहा है कि वे अपने आधार कार्ड और पहचान पत्र के साथ मुंबई आएं। ठाकरे के इस दिशा-निर्देश के बाद यह अटकलें तेज हो गई थीं कि सरकार बनाने की गुत्थी सुलझने वाली है।राज्यपाल अब सिर्फ पार्टी के पत्रों के आधार पर भी बहुमत सिद्ध करने का न्यौता नहीं देने वाले हैं। बताया जा रहा है कि अब हर पार्टी को अपने विधायकों की सूची उनके पहचान पत्र, आधार कार्ड और हस्ताक्षर के साथ पेश करनी होगी।
बता दें कि महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी के पास 105, शिवसेना के पास 56 सीटें हैं, जबकि एनसीपी और कांग्रेस के पास क्रमश: 54 और 44 सीटें हैं। राज्य में सरकार बनाने को इच्छुक किसी भी दल या गठबंधन को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कम से कम 145 विधायकों के समर्थन की ज़रूरत होगी।
प्रदेश में 24 अक्टूबर को चुनाव परिणाम आये थे और भाजपा द्वारा सरकार बनाने में असमर्थता जताने के बाद राज्यपाल ने पहले शिवसेना और बाद में एनसीपी को बुलाया और उन्हें 24-24 घंटे का समय दिया। शिवसेना द्वारा 48 घंटे का समय माँगा गया तो राज्यपाल ने इंकार कर दिया और प्रदेश पर राष्ट्रपति शासन लगा दिया।
लेकिन राष्ट्रपति शासन लगने के बावजूद प्रदेश में सरकार बनाने की कोशिशें थमीं नहीं। शिवसेना-कांग्रेस और एनसीपी ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाया और उसके अनुसार सरकार बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। अब यह प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में पहुंच गयी है।
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