किसान सभा के नेताओं ने महाराष्ट्र सरकार पर आरोप लगाया है कि इस मार्च की वजह से उन्हें परेशान किया जा रहा है। किसान नेताओं ने कहा कि पुलिस संगठन के कुछ नेताओं को डराने का प्रयास भी कर रही है।
- किसान नेताओं का कहना है कि पुलिस की ओर से तर्क यह दिया जा रहा था कि इस मार्च की वजह से यातायात प्रभावित होगा। मार्च के आयोजक अजित नवले ने कहा कि पिछले साल मार्च महीने में जब यह मार्च मुंबई पहुँच रहा था तो स्कूलों में परीक्षाएँ चल रही थीं जिसके कारण बिना किसी को परेशान किए सारे किसान शांतिपूर्वक आज़ाद मैदान पहुँचे थे। नवले ने कहा कि किसानों के इस शांति मार्च को तब सभी ने ना सिर्फ़ सराहा था अपितु मुंबई के सामान्य लोग भी मदद के लिए आगे आए थे।
किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अशोक ढवले, डॉ. अजीत नवले, डॉ. डी.एल कराड, किसान सभा के विधायक जेपी गावित ने इस मार्च को लेकर नासिक में पत्रकारों को बताया कि इस बार वे निर्णायक लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। किसानों के इस लाँग मार्च ने प्रदेश की राजनीति को और गर्मा दिया है जो पहले से ही चुनावी जोड़तोड़ के चलते गर्म है।
क्या हैं किसानों की माँगें
- किसानों को क़र्जमाफ़ी मिले।
- किसानों को फ़सल का उचित दाम मिले।
- फ़सल बीमा के तहत बीमा फ़ायदा मिले।
- वन विभाग की ज़मीन आदिवासियों को मिले।
- पॉली हाउस किसानों को राहत दी जाए।
- देवस्थान ट्रस्ट की ज़मीन किसानों को मिले।
- महाराष्ट्र में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों का पानी महाराष्ट्र के किसानों को मिले।
- जानवरों के लिए चारा छावनी (Animal shelter) बने या निजी संस्थानों को इसे शुरू करने के लिए अनुदान मिले।
- सूखाग्रस्त इलाक़े के किसानों को क़र्ज और बिजली में राहत दी जाए।
सरकार के लिए हो सकती है मुसीबत
चुनाव से ठीक पहले किसानों का यह मार्च सरकार के लिए एक नया सिरदर्द साबित हो सकता है। 180 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए किसानों का मार्च 27 फ़रवरी को मुंबई पहुँचेगा। नाराज़ किसानों का आरोप है कि सरकार ने उनके साथ वादाख़िलाफ़ी की है, सरकार माँगें मानने की बात कहती है लेकिन अपने वादों को पूरा नहीं करती।
इस बार के मार्च में किसानों की संख्या पिछले वर्ष की तुलना में ज़्यादा है। इस बार प्रमुख मुद्दा पानी का भी है। महाराष्ट्र में भीषण सूखा है और किसान कह रहे हैं कि महाराष्ट्र का पानी गुजरात को नहीं दिया जाए।
साल भर के भीतर दूसरा मार्च
लोकसभा चुनाव सिर पर हैं तो किसान भी इस बार निर्णायक लड़ाई के मूड में नज़र आ रहे हैं। राज्य और केंद्र की बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ असंतोष जताते हुए एक साल के भीतर यह किसानों का दूसरा मार्च है। पिछले साल मार्च महीने में किसानों ने कर्ज़माफ़ी, फ़सल बीमा, फ़सलों की उचित क़ीमत जैसी माँगों के साथ मार्च निकाला था।
- बता दें कि तब क़रीब 35,000 किसानों ने 180 किलोमीटर का रास्ता तपती धूप में नंगे पैर तय किया था। मुंबई पहुँचते-पहुँचते उनके पैरों में छाले पड़ गए थे। बूढ़े से बूढ़े किसान, महिला हो या पुरुष, अपनी आवाज़ सत्ता तक पहुँचाने के लिए टूटी चप्पलों और चोटिल पैरों के साथ मुंबई पहुँचे थे।
ऐसे में मुंबई ने एक बार फिर अपना जज्बा दिखाया था। महानगर में नंगे पैर मार्च कर रहे किसानों के लिए कोई चप्पलें देने के लिए आगे बढ़ा तो कोई खाना देने के लिए। किसानों के मार्च के रास्ते में लोग उन्हें बिस्किट-पानी से लेकर खाना तक मुहैया करा रहे थे।
सरकार ने दिलाया था भरोसा
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने किसानों की माँगों को मानते हुए उस समय लिखित आश्वासन भी दिया था। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को इन माँगों पर व्यक्तिगत तौर पर ध्यान देने को भी कहा था। किसानों की मुख्य माँगों में संपूर्ण क़र्जमाफ़ी के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और प्राकृतिक आपदा की स्थिति में प्रति एकड़ 40,000 रुपये तक मुआवजा देने की बात थी। उस समय मार्च का नेतृत्व कर रहे किसान नेता हरीश नवले ने कहा था कि सरकार यदि अपने वायदे से पीछे हटेगी, तो किसान आमरण अनशन करने को बाध्य होंगे।
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