इस खबर के साथ दी गई फोटो को गौर से देखिए। यह मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के एक रेस्टोरेंट की है। सीएम शिवराज सिंह चौहान परिवार के साथ डिनर करने पहुंचे हैं। रेस्टोरेंट में जो अन्य लोग या परिवार खाना खा रहे होते हैं वो शिवराज परिवार को देखकर चौंकते हैं। शिवराज उनसे सामान्य शिष्टाचार की बातें पूरी तरह संयमित होकर कर रहे हैं। इसी बीच वहां एक परिवार अपने बच्चे का बर्थ डे मनाने पहुंचता है तो शिवराज उस आयोजन में भी शामिल हो जाते हैं। वो बच्चे को केक तक खिलाते हैं। यह फोटो और वीडियो फौरन ही सोशल मीडिया पर वायरल हो जाता है और मंगलवार को भी वायरल है। लोग इस पर बात कर रहे हैं। चारों तरफ शिवराज की सादगी के चर्चे हैं।
मध्य प्रदेश में अगले मुख्यमंत्री के लिए चर्चा का बाजार गर्म है। भाजपा के हर गुट के अपने-अपने नाम है। भाजपा आलाकमान ने चुनाव से पहले ही साफ कर दिया था कि शिवराज अगले सीएम के रूप में पार्टी का चेहरा नहीं होंगे। पीएम मोदी और उनके नंबर 2 अमित शाह ने एमपी में पूरा अभियान चलाया और पार्टी को जिताकर भी दिखा दिया। लेकिन दूसरी तरफ शिवराज सिंह चौहान ने भी पूरी तरह संयमित रहते हुए दिखा दिया की पार्टी का अनुशासन क्या है। लेकिन वो इशारों में बात करने से नहीं चूके। सोमवार रात में उनका डिनर भी इस बात का संकेत दे रहा है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई बेचैनी नहीं है। परिवार को वो समय दे रहे हैं और लजीज भोजन का आनंद ले रहे हैं।
भाजपा आलाकमान ने तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को चुनाव लड़ने एमपी भेजा। इससे साफ संकेत गया कि चौहान को दरकिनार किया जा रहा है। लेकिन भाजपा के इतिहास में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने वाले शिवराज का दावा अब पार्टी के शानदार प्रदर्शन से मजबूत हुआ है। भाजपा आलाकमान अब क्या कदम उठाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा। अगर शिवराज ही सीएम फिर से बनाए जाते हैं तो एक तरह से आलाकमान का सरेंडर होगा। लेकिन क्या मोदी-शाह ऐसा चाहेंगे। यह बड़ा सवाल है।
मुख्यमंत्री की लाइन में केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल और ज्योतिरादित्य सिंधिया, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हैं। ये सभी आलाकमान की सूची वाले नाम हैं। लेकिन इस जीत ने शिवराज के सामने इन नामों को बौना कर दिया है। अब प्रेशर शिवराज पर नहीं आलाकमान पर है।
हालांकि मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कुछ और नाम भी हैं, जिनमें दो ब्राह्मण नेता प्रदेश पार्टी प्रमुख वीडी शर्मा और पांचवीं बार विधायक और निवर्तमान राज्य कैबिनेट में मंत्री राजेंद्र शुक्ला शामिल हैं। दोनों विंध्य क्षेत्र से आते हैं। हालांकि आलाकमान अब शिवराज सिंह चौहान को कम से कम अगले लोकसभा चुनाव तक तो मुख्यमंत्री बनाए ही रखेगा। आगामी लोकसभा चुनाव में छह महीने से भी कम समय बचा है।
ऐसा नहीं है कि भाजपा में शिवराज के विरोधियों की कमी है। इसमें कैलाश विजयवर्गीय का नाम सबसे ऊपर है। भाजपा की प्रचंड जीत के बाद जब विजयवर्गीय से मध्य प्रदेश में पार्टी की जीत में चौहान की लाडली बहना योजना की भूमिका के बारे में पूछा गया, तो विजयवर्गीय ने जवाब दिया था कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी तो भाजपा जीती है। क्या वहां लाडली बहना योजना थी। फिर उन्होंने कहा कि भाजपा की यह जीत सिर्फ 'मोदी मैजिक' की वजह से मिली है। एकमात्र वजह सिर्फ मोदी हैं। विजयवर्गीय मालवा-निमाड़ क्षेत्र से आते हैं जहाँ भाजपा ने 66 में से 47 सीटें जीतीं। कैलाश विजयवर्गीय को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को करीबी माना जाता है, लेकिन विवादों में रहने से उनके मुख्यमंत्री पद की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है।
इनके बाद प्रह्लाद सिंह पटेल, ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के नाम हैं। इनमें पटेल सिर्फ बुंदेलखंड क्षेत्र तक सीमित हैं। सिंधिया कांग्रेस से साढ़े तीन साल पहले आए हैं और नरेंद्र सिंह चुनाव संचालन समिति के प्रमुख रहे हैं। हालांकि तोमर पीएम मोदी के नजदीक माने जाते हैं लेकिन ये सभी नाम शिवराज के मुकाबले कोई लकीर नहीं खींच पाए हैं। यह बात तमाम राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि भाजपा की जीत में शिवराज की विनम्र छवि और सरकारी योजनाओं की डिलिवरी का बहुत बड़ा हाथ है। एमपी में महिलाओं के वोट सिर्फ राज्य सरकार की अच्छी स्कीमों की वजह से मिले हैं। बहरहाल, अगले कुछ घंटे का इंतजार और, तस्वीर साफ हो जाएगी- भाजपा आलाकमान शिवराज के आगे घुटने टेकेगा या फिर बदलाव करेगा।
अपनी राय बतायें