क्या मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का अब बीजेपी से भी मोहभंग हो चला है? क्या वह बीजेपी छोड़ने वाले हैं? और क्या वह अपने पिता माधवराव सिंधिया की पुरानी पार्टी ‘मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस’ को पुनर्जीवित करेंगे? ये और ऐसे अनेक सवाल मध्य प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में पूछे जा रहे हैं।
यह चर्चा इसलिए शुरू हुई है क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने ट्विटर हैंडल पर बीजेपी शब्द हटाकर ‘पब्लिक सर्वेंट’ लिख लिया है। यह कुछ वैसा ही है, जैसा उन्होंने कांग्रेस छोड़ने से ठीक पहले किया था। तब उन्होंने पब्लिक सर्वेंट के साथ क्रिकेट प्रेमी भी लिखा रहने दिया था। ठीक ऐसा ही अभी हुआ है।
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4 महीने पहले हुए थे बीजेपी में शामिल
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने करीब 18 बरस तक कांग्रेस की राजनीति करने के बाद 9 मार्च, 2020 को पार्टी छोड़ दी थी और 11 मार्च को वह विधिवत सदस्यता लेकर बीजेपी में शामिल हो गये थे। मध्य प्रदेश के डेढ़ दर्जन से ज्यादा उनके समर्थक विधायकों ने भी विधायकी से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था। इसके बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई थी और प्रदेश में बीजेपी पुनः सरकार बनाने में सफल हुई थी।
पूरे नहीं हुए ‘वादे’!
सूत्रों की मानें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया बेहद नाखुश हैं। बीजेपी ज्वाइन करने से पहले जो ‘वादे’ बीजेपी की ओर से उनसे किए गए थे, उनका परवान न चढ़ पाना सिंधिया की खिन्नता की वजह है। शिवराज की अगुवाई में बीजेपी की सरकार को बने दो महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है लेकिन सिंधिया के ज़्यादातर समर्थकों को कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई है। बताया जा रहा है कि मंत्री पद छोड़कर आये पुराने कांग्रेसी इससे बेचैन हैं।
कई तरह की हिदायतों और बीजेपी के दिग्गजों के व्यवहार के कारण कांग्रेस छोड़कर आए सिंधिया समर्थक दुखी हैं। चूंकि सभी पूर्व विधायकों को एक बार फिर चुनाव मैदान में जाना है और इस बार बीजेपी के टिकट पर लड़ना है, लिहाजा उनके सामने चुनौतियां ज्यादा हैं।
मंत्री पद के दावेदार कांग्रेस के पूर्व विधायकों से क्षेत्र की जनता भी सवाल कर रही है और उनके लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है।
सिंधिया के खिलाफ ‘बयानबाज़ी’
ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी द्वारा पचा ना पाना भी खटास की वजह बताई जा रही है। सिंधिया समर्थक सतत दावे कर रहे हैं कि आने वाले उपचुनाव में सिंधिया ही बीजेपी का प्रमुख चेहरा होंगे। उधर, बीजेपी फरमा रही है, ‘चेहरा शिवराज हैं। सिंधिया तो केवल सपोर्ट में रहने वाले हैं।’
बीजेपी का यह दावा सिंधिया और उनके समर्थकों को रास नहीं आ रहा है। ग्वालियर-चंबल संभाग में सबसे ज्यादा उपचुनाव होने हैं। यहां एक दर्जन के लगभग सीटें सिंधिया के बलबूते पर ही कांग्रेस ने जीती थीं और सरकार बनाई थी। सिंधिया का मैजिक ही उनके समर्थकों की असली ताकत है।
बीजेपी द्वारा सिंधिया को ‘दरकिनार’ करना और शिवराज के चेहरे को आगे करने को, कांग्रेस के पूर्व विधायक स्वयं के राजनीतिक भविष्य के लिए घातक मान रहे हैं।
अभी टिकटों का एलान होना बाकी है। मंत्री बनाये जाने हैं। कमलनाथ सरकार में मंत्री रहे छह में से दो को बीजेपी की सरकार एडजस्ट कर चुकी है। बचे हुए चार तथा अन्य पुराने कांग्रेसी नेता भी कतार में बने हुए हैं। कुल मिलाकर इनके साथ बीजेपी में भी बेचैनी का आलम बना हुआ है।
तमाम राजनीतिक समीकरणों के बीच सिंधिया के ट्विटर हैंडल में से बीजेपी हटना, बेशक मध्य प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरणों की ओर संकेत कर रहा है।
‘मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस’ है विकल्प
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास अब बहुत विकल्प नहीं हैं। कांग्रेस में उनकी वापसी फिलहाल तो मुमकिन नहीं है। बीजेपी छोड़ते हैं तो क्या करेंगे? ज्योतिरादित्य के सामने विकल्प उनके पिता माधवराव सिंधिया द्वारा बनाई गई ‘मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस’ भर विकल्प है।
हवाला कांड में नाम आने के बाद जब कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया का टिकट काटा था तो उन्होंने ग्वालियर से लोकसभा का चुनाव ‘मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस’ के बैनर पर लड़ा और जीता था। दूसरी ओर, एनडी तिवारी और अर्जुन सिंह ने ‘तिवारी कांग्रेस’ बनाई थी।
जब सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी थी, तब भी यह कयास लगाये गये थे कि बीजेपी में शामिल होने के बजाय वे अपने पिता की पार्टी को पुनर्जीवित करके इसके बैनर पर आगे की राजनीति कर सकते हैं।
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