लोकसभा चुनाव 2019 में अपने गढ़ गुना, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र और मध्य प्रदेश के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी ‘सुपर फ्लॉप’ रहे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया को क्या कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनाया जाएगा? यह सवाल, मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों और प्रशासनिक हलकों में गूँज रहा है। मध्य प्रदेश विधानसभा 2018 के चुनाव में कांग्रेस की 15 सालों के सत्ता रूपी वनवास के बाद सरकार में वापसी का सेहरा आगे होकर सिंधिया ने अपने सिर बाँधा था। उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर दावा भी ठोका था, लेकिन कमलनाथ के आगे उनकी एक नहीं चल पायी थी।
हालिया लोकसभा चुनावों में अपनी सीट अमेठी और देश भर में पार्टी की शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इस्तीफ़ा दे दिया था। हालाँकि पार्टी ने अब साफ़ कर दिया है कि राहुल गाँधी ही अध्यक्ष बने रहेंगे। राहुल गाँधी ने ‘अध्यक्ष मंडल’ के गठन का सुझाव पार्टी के रणनीतिकारों के सामने रखा हुआ है। बताते हैं कि कांग्रेस अब इसी दिशा में (अध्यक्ष मंडल के गठन के लिए) आगे बढ़ रही है। अंतरिम अध्यक्ष पद के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के.सी. वेणुगोपाल के नाम सबसे आगे बताये जा रहे हैं। दक्षिण से 23 सांसद हैं, लिहाज़ा वेणुगोपाल का दावा अंतरिम अध्यक्ष पद के लिए ज़्यादा मज़बूत माना जा रहा है। सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा के नाम कार्यकारी अध्यक्ष पद के लिए चर्चाओं में हैं।
कैसा होगा कांग्रेस का ‘नया चेहरा’
कांग्रेस के ‘नये चेहरे’ पर स्थिति अगले कुछ दिनों में साफ़ हो जाएगी। ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम अंतरिम अध्यक्ष पद की दौड़ में है। कांग्रेस में कोई भी निर्णय आसानी से नहीं होता, ख़ासकर, जब गाँधी परिवार से इतर किसी को लेकर पार्टी से जुड़ा महत्वपूर्ण निर्णय लिया जाना है तो ‘ज़ोर-आज़माइश’ कुछ ज़्यादा ही होना तय माना जा रहा है। प्रेक्षकों का कहना है, ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी का बेहद अहम पद हासिल करने में सबसे ज़्यादा कोई सूबा कठिनाइयाँ पेश करेगा तो वह मध्य प्रदेश ही होगा।’ इस बारे में प्रेक्षक दलील देते हैं, ‘मुख्यमंत्री कमलनाथ और वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को सिंधिया फूटी आँख नहीं सुहाते हैं। इन नेताओं के बीच खींचतान और शह-मात के अनेक ताज़ा किस्से हैं। अंतरिम अध्यक्ष पद के लिए भी मध्य प्रदेश से यही नेता ज्योतिरादित्य को चुनौती पेश करेंगे।’
सिंधिया को अंतरिम अध्यक्ष बनाने से नुक़सान?
बहरहाल, सिंधिया को मिलने वाली संभावित ज़िम्मेदारी की सुगबुगाहट पर उनके अपने गृह क्षेत्र शिवपुरी के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद भार्गव कहते हैं, ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया को अखिल भारतीय कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनाया जाना कांग्रेस पार्टी और स्वयं सिंधिया के लिए बेहद हानिकारक होगा।’ वह कहते हैं, ‘ग्वालियर राजघराने की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे सिंधिया की मुट्ठी गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर हुई बेहद क़रारी हार के बाद पूरी तरह से खुल गई है। वोटरों ने जीत के मार्जिन को कम करके 2014 में संकेत दे दिये थे, इसके बावजूद सिंधिया ने ‘महाराजा’ वाला कल्चर नहीं छोड़ा। अति-आत्मविश्वास में रहे, लिहाज़ा इस बार बुरी तरह हार गये।’
प्रमोद भार्गव का कहना है, ‘पार्टी का मुखिया यायावर होना चाहिए। सिंधिया न तो सहज और सरल हैं और न ही आसानी से उपलब्ध होते हैं। सिंधिया के अपने समर्थक विधायक और मंत्री तक जब बिना वक़्त लिये उनसे नहीं मिल सकते हैं तो कांग्रेस का आम कार्यकर्ता कैसे उनसे मिलेगा। सिंधिया जनता को सहज कहाँ और कैसे उपलब्ध होंगे?’ शिवपुरी के ही अन्य वरिष्ठ पत्रकार अशोक अग्रवाल का कहना है, ‘गुना सीट पर क़रारी हार ने महाराज के तथाकथित ग्लैमर को नेस्तानाबूद कर दिया है।’ वह आगे कहते हैं, ‘एआईसीसी के अंतरिम अध्यक्ष की कुर्सी ज्योतिरादित्य को सौंपा जाना - स्वयं कांग्रेस और सिंधिया के लिए आत्मघाती क़दम होगा।’
वेणुगोपाल से ज़्यादा लोकप्रिय हैं ज्योतिरादित्य
दक्षिण में 24 सीटें लाने में अहम भूमिका निभाने वाले के.सी.वेणुगोपाल ‘सांसदों के नंबर गेम’ के चलते अंतरिम अध्यक्ष पद की दौड़ में भले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया से आगे हों, लेकिन लोकप्रियता में सिंधिया का ग्राफ़ वेणुगोपाल से बहुत ज़्यादा ऊपर है। देश के हर हिस्से में सिंधिया की पैठ है। उनका चार्मिंग चेहरा शायद ही किसी सूबे में अंजान होगा। कश्मीर से कन्याकुमारी तक को सिंधिया ने जमकर नापा है। बेदाग़ राजनीतिक छवि वाले गिने-चुने देश के राजनीतिज्ञों में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भी ऊपरी पायदान पर है।
48 साल बाद टूटा गुना में महल का ‘तिलस्म’
गुना सीट पर 48 बरस बाद सिंधिया राजघराने का ‘तिलस्म’ टूटा। यह सीट 1971 से सिंधिया राजघराने के सदस्य अथवा उनके द्वारा उतारे गये समर्थक के पास रही। स्वर्गीय माधव राव सिंधिया ने गुना सीट को 1971 में जनसंघ के उम्मीदवार और 1977 में निर्दलीय प्रत्याशी की हैसियत से जीता था। माधवराव सिंधिया गुना सीट पर 1980 में कांग्रेस के उम्मीदवार की हैसियत से लड़े और सवा लाख वोट से सीट को जीते। इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 1984 का चुनाव उन्होंने ग्वालियर से लड़कर जीता और गुना में अपने एडीसी (स्टाफ़र) महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा को लड़ाया। महेन्द्र सिंह ने सीट को जीता था। इसके बाद 1989, 1991, 1996 और 1998 में विजयाराजे सिंधिया को बीजेपी के टिकट पर ‘जनता’ (सही मायनों में प्रजा) ने गुना से लोकसभा पहुँचाया। अस्वस्थता के चलते 1999 में विजयाराजे सिंधिया ने चुनाव नहीं लड़ा तो माधवराव कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर गुना से लड़े और जीते।
माधवराव सिंधिया की विमान दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया पहली बार 2002 में उप-चुनाव में गुना से निर्वाचित हुए। इसके बाद 2004, 2009 और 2014 में उन्हें जीत मिली। मगर साल 2019 का चुनाव गुना लोकसभा सीट पर ज्योतिरादित्य क़रीब सवा लाख वोट से हार गये।
हालिया दौरे में सिंधिया दिखे हताश, समर्थक हुए निराश
चुनाव में मिली क़रारी हार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया पहली बार 8 से 10 जून के बीच शिवपुरी, अशोक नगर और गुना पहुँचे। उन्होंने इस दरमियान केवल कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कीं। सांसद रहने के दौरान जब भी सिंधिया क्षेत्र में आते थे उनका दौरा तूफ़ानी हुआ करता था। आम लोगों से मेल-मुलाकात का सिलसिला भी चला करता था। हार के बाद सिंधिया बेहद हताश नज़र आये। मीडिया से मुलाक़ात के दौरान भी हार की निराशा सिंधिया के चेहरे पर साफ़ तौर पर छलकी। विश्लेषकों के अनुसार, लोकसभा के उप-चुनाव 2002 की पहली जीत से लेकर हालिया हार के पहले तक का उनका हर दौरा बेहद गर्मजोशी भरा और कार्यकर्ताओं को आत्मविश्वास से लवरेज करने वाला हुआ करता था। विश्लेषकों ने यह भी कहा कि इस दौरे में सिंधिया के बॉडी लेंग्वेज ने उनके खांटी समर्थकों और पार्टी कार्यकर्ताओं को ख़ासा निराश किया।
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