बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) 2012 से ही सत्ता से बाहर है। पार्टी का आधार उसके बाद लगातार गिरा है। नरेंद्र मोदी की लहर में 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य पर पहुँची बीएसपी ने 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपना आधार और गँवा दिया। अब पार्टी समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ 2019 के लोकसभा चुनाव में ताल ठोकने की तैयारी में है।
यूपी में अपनी ज़मीन क्यों गँवा रही है बीएसपी?
- चुनाव 2019
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- 17 Mar, 2019

वैचारिक विचारधारा से इतर जातियों की गिनती कर अपनी पार्टी से जोड़ने का यह फ़ॉर्मूला बीएसपी को नुक़सान पहुँचा रहा है और वह लगातार अपने जनाधार गँवा रही है।
यूपी में ताक़तवर होने के साथ ही देश के अन्य हिंदी भाषी प्रांतों में भी बीएसपी ने पैठ बनाना शुरू कर दिया था। सत्ता में आने पर जब पार्टी आर्थिक रूप से सशक्त हुई तो पूर्वोत्तर से लेकर केरल और तमिलनाडु तक पार्टी हर सीट पर अपने प्रत्याशी उतारने लगी। कम से कम मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पंजाब में दलितों के एक बड़े तबक़े ने बीएसपी में अपने उद्धार की उम्मीद देखी और राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीएसपी को इतने मत मिल जाते थे कि वह कांग्रेस को नुक़सान पहुँचा सके।