इन दिनों मकर संक्रांति के त्योहार की धूम है और केरल में सबरीमला मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात को घने अंधेरे में एक ज्योति जलती हुई दिखती है, इस ज्योति को मकर ज्योति कहा जाता है। इसके दर्शन के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु सबरीमला मंदिर आते हैं। दक्षिण भारत में फ़ैले भगवान अय्यप्पा के इन हजारों श्रद्धालुओं की आस्था को देखते हुए ही बीजेपी और कांग्रेस हिंदू वोटों को अपने पाले में करने की तैयारी में जुटे हुए हैं।
बीजेपी को सबरीमला मंदिर आंदोलन में राम मंदिर आंदोलन जैसी संभावना नज़र आ रही है। राम मंदिर आंदोलन ने भारतीय राजनीति को नई दशा और दिशा दी थी। इसी आंदोलन की वजह से बीजेपी उत्तर भारत में अपने पाँव मजबूती के साथ जमाने में कामयाब रही थी। सबरीमला मंदिर के मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस, दोनों को लगता है कि इस मुद्दे से वे अपने हिंदू वोट बैंक को बढ़ा सकते हैं। बीजेपी और कांग्रेस में दक्षिण के हिंदू वोट बैंक पर कब्ज़ा जमाने की जंग छिड़ी हुई है।
सबरीमला मंदिर आंदोलन से बीजेपी को एक ऐसा मुद्दा मिला है जिसके दम पर वह दक्षिण भारत में अपनी राजनीति चमकाना चाहती है। दिलचस्प बात यह है कि सबरीमला मंदिर आंदोलन में कांग्रेस भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है।
दक्षिण भारत में अहम है मुद्दा
बड़ी बात यह है कि सबरीमला मंदिर आंदोलन का प्रभाव सिर्फ़ केरल तक ही सीमित नहीं है। इस आंदोलन का प्रभाव पूरे दक्षिण भारत में है। सबरीमला मंदिर आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में होती है और केरल के अलावा तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना और कर्नाटक से भी हजारों भक्त सबरीमला आते हैं। अय्यप्पा स्वामी के भक्त दक्षिण के सभी राज्यों में एक समान ही हैं। और अय्यप्पा के इन भक्तों में ज़्यादातर भक्त सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के ख़िलाफ़ हैं।
ये सभी भक्त उच्चतम न्यायालय के उस फ़ैसले से नाराज़ हैं जिसमें सभी आयु-वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई है। इस फ़ैसले के विरोध में दक्षिण के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शन भी हुए हैं। विरोध दिन-ब-दिन प्रखर और मुखर होता जा रहा है। विरोध में सबसे ज़्यादा मुखर सवर्ण जाति के लोग हैं।
केरल में नायर समुदाय के लोग आंदोलन में सबसे आगे हैं। नायर क्षत्रिय हैं। क्षत्रियों, ब्राह्मणों और दूसरी सवर्ण जाति के लोगों का कहना है कि सालों पुरानी परंपरा को समानता के अधिकार के नाम पर तोड़ना ठीक नहीं है।
हिंदू वोट बैंक पर है नज़र
सबरीमला मंदिर आंदोलन ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। बीजेपी और कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में जुट गई हैं। कांग्रेस और बीजेपी की नज़र हिंदू वोट बैंक पर है। केरल में हिंदुओं की आबादी 54.7 फ़ीसदी है। बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि केरल के ज़्यादातर हिंदू, विशेषकर सवर्ण जाति के लोग उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले के ख़िलाफ़ हैं। इसी वजह से बीजेपी यह साबित करने की कोशिश में है कि वह उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर पुनर्विचार याचिका का पूरा समर्थन करती है।
इतना ही नहीं, वह मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक को बनाए रखने के लिए अपनी पूरी ताक़त लगा देगी। इसी वजह से जब केरल की वामपंथी सरकार ने उच्च न्यायालय के फ़ैसले को अमलीजामा पहनाते हुए महिलाओं को मंदिर में प्रवेश दिलाने की कोशिश की तब बीजेपी और उससे जुड़ी संस्थाओं ने ही इसका पुरजोर विरोध किया।
सबरीमला मंदिर आंदोलन के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी केरल में बीजेपी के साथ पूरी ताक़त के साथ खड़ा है। संघ के स्वयंसेवक भी सबरीमला आंदोलन में बढ़-चढ़कर कर हिस्सा ले रहे हैं।
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि कुछ महिलाओं को मंदिर में प्रवेश दिलवाकर वामपंथी सरकार ने कइयों को नाराज़ किया है। कई हिंदुओं को यह लगता था कि उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले के बावजूद महिलाएँ सबरीमला मंदिर में प्रवेश का साहस नहीं करेंगी और अगर कोई महिला ऐसा करती भी है तो उसे रोका जाएगा। सरकार भी परंपरा का पालन करेगी।
कांग्रेस ने बदली रणनीति
जानकारों की राय में वामपंथी सरकार ने कुछ महिलाओं को मंदिर में भेजकर बीजेपी को आंदोलन को उग्र करने का हथियार दे दिया है और बीजेपी ने किया भी ऐसा ही। जब कांग्रेस ने देखा कि बीजेपी हिंदू वोट बैंक को अपनी ओर खींच रही है तब उसने भी अपनी रणनीति बदली और मंदिर आंदोलन में पूरी ताक़त झोंक दी। बात साफ़ है। मंदिर आंदोलन के नाम पर वोट की राजनीति हो रही है।
वामपंथियों का कहना है कि बीजेपी लाख कोशिश कर ले वह केरल के ‘सेक्युलर फ़ैब्रिक’ को नहीं बिगाड़ सकती है। एक वामपंथी सांसद ने कहा कि धर्म की राजनीति कहीं और कामयाब हो सकती है लेकिन केरल में नहीं। अपनी बात को साबित करने के मक़सद से उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी के राम मंदिर आंदोलन और उसकी राष्ट्रीय एकता यात्रा का केरल की जनता पर कोई असर नहीं पड़ा। केरल के लोग हमेशा प्रगतिशील रहे हैं और रहेंगे।
चुनावों में बीजेपी के लगातार बढ़ते वोट फ़ीसदी के बारे में पूछे जाने पर इन वामपंथी सांसद ने कहा कि बीजेपी का वोट फ़ीसदी कितना भी बढ़े, यह सीटें जीतने वाला कभी नहीं बन सकता है। लेकिन उन्होंने कहा कि अगर कुछ बड़े कांग्रेसी नेता बीजेपी में चले जाते हैं और कुछ फ़िल्मी हस्तियाँ बीजेपी से जुड़ती हैं तब उसे राजनीतिक फ़ायदा मिल सकता है, और कुछ सीटें भी।
जानकारों का कहना है कि केरल में बीजेपी तीन सीटों पर जीत सकती है। ये तीन लोकसभा सीटें – तिरुवनंतपुरम, पलक्कड़ और कासरगोड़ हैं। 2016 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने इन तीन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पड़ने वाले विधानसभा क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया था।
अगर बात 2014 के लोकसभा चुनावों की करें तो कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट को 38 फ़ीसदी वोट मिले थे और केरल की 20 में से 12 सीटें उसके खाते में गई थीं। लेफ़्ट फ़्रंट को 30 फ़ीसदी वोट मिले थे और उसके खाते में 12 सीटें आई थीं। बीजेपी को 10.33 फ़ीसदी वोट मिले थे और वह एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई थी, लेकिन तिरुवनंतपुरम की सीट पर बीजेपी दूसरे नंबर पर थी।
बीजेपी को उम्मीद है कि अगर मंदिर आंदोलन इसी तरह चलता रहा तो 2019 के लोकसभा चुनाव में केरल में पहली बार उसका खाता खुलेगा। पिछले विधानसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी केरल विधानसभा में अपनी मौजूदगी दर्ज करवा पाई थी।
बीजेपी की कोशिश कांग्रेस और लेफ़्ट की तरह ही केरल में अपना एक फ़्रंट भी बनाने की है। फ़िलहाल केरल कांग्रेस (नेशनलिस्ट) और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (बी) बीजेपी के साथ है। बीजेपी की नज़र कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट की कुछ छोटी पार्टियों पर भी है।
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